SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज हो गया था । हम्मीर महाकाव्य में 'कंचुक' अर्थात् चोली के अर्थ में 'चोल' शब्द का प्रयोग किया गया है । " पद्मानन्द महाकाव्य में वधू के विवाह वस्त्रों के लिए 'पारिणेत्र वसन' का प्रयोग हुआ है । पद्मानन्द महाकाव्य में ही वधु का 'दूकूल' वस्त्रों से शृङ्गार करने का उल्लेख भी मिलता है । उच्चवर्गीय स्त्रियाँ 'मणिकम्बल' का भी परिधान वस्त्र के रूप में प्रयोग करतीं थीं । ४ स्त्रियों के सौन्दर्य प्रसाधन आलोच्य युग में स्त्रियां सौन्दर्य प्रसाधनों की बहुत शौकीन रहीं थीं । वराङ्गचरित के अनुसार सुन्दर स्त्रियाँ भी साज शृङ्गार करने में विशेष रुचि लेतीं थीं । सुन्दर वेशभूषा धारण करना तथा अनेक प्राभूषणों को पहन कर चलना स्त्रियों का विशेष स्वभाव रहा था । चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का स्त्रियां शरीर पर लेप करती थीं । ६ स्त्रियां अपने केशों को भी सुसज्जित ढङ्ग से रखतीं थीं । ७ सिर के जूडे पर तथा कानों पर फूलों को सजाया जाता था। 5 अनेक प्रकार की पत्रावलियों से भी सिर को सजाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। कपोल - प्रदेशों पर भी विभिन्न प्रकार की चित्रकारी की जाती थी। १ धर्माशर्माभ्युदय महाकाव्य में १. दृढं चौलान्तरीयाभ्यां स्तन श्रोणीप्रविभ्रती । - हम्मीर०, १३.१५ २. तैः पारिणेत्र वसनैर्द्यु सदङ्गनाभिस्ते रेजतुः । - पद्मा०, ९.६३ ० ३. अङ्गानुकूलनवदिव्यदुकूलानि । पद्मा० ६.४५ ४. छन्नाभिर्मणिमय कम्बलैवृषीभिः । द्विस०, १४.११ ५. सुमङ्गलायैव कृतप्रसाधना । - वराङ्ग०, ११.४३, पौराङ्गनाभिः कृतभूषणाभिः । - वही, २३.५६ सन्तो नरा युवतयश्च विदग्धवेषा । - वही, १.२७, चक्रायमाणैर्मणिकर्णपूरैः प्राशप्रकाशै र तिहारहारै: भूमिश्च चापाकृतिभिर्विरेजे : कामास्त्रशाला इव यत्र बालाः । नेमी०, १.३६ तथा ताम्बूलवस्त्राभरणप्रसून श्रीखण्ड संस्कारसमाकुलाभिः । कीर्ति०, ७.६० शरीरे चन्दनं गौरे सौरभ्यादन्वमीयत । - कीर्ति० ७.४६ द्विस० १५. १ तथा जयन्त १५.२१ कालिका च रचितालकावलि० । – धर्म०, ५.४३, ५० ८. द्विस०, १५.१५, धर्म०, १४.४८ ε. आरोप्य चित्रावरपत्रवल्ली: । धर्म०, १४.६०, तथा द्विस०, १५.१५ १०. धर्म०, ५. ५१, कीर्ति०, ७.५८ ६. ७.
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy