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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
सामान्य वस्त्र
१. फ्ट'-साधारण वस्त्र । २ पट्टिका'- कटिवेष्टन अथवा कमरबन्द । ३. पटो-द्विपट्टिका अथवा दुपट्टा । ४. बुकूल-प्रोढ़नी अथवा दुशाला । ५. रल्लोक-प्राय: कम्बल को कहा जाता होया अथवा यह कम्बल के
समान ही परिधान वस्त्र रहा होगा। ६. कम्बल-परिधाम वस्त्र । चन्द्रप्रभ के टीकाकार ने रत्ककम्बल' को 'लोहित कम्बल के रूप में स्पष्ट किया है।' स्त्रियों के वस्त्र
१. उत्तरीय-शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाने वाला परिधान वस्त्र 'उत्तरीय' कहलाता था।' वसन्तविलास महाकाव्य में 'उत्तरीय' के मांचल से
आँखों को ढकने का उल्लेख भी पाया है । १० चादर के पर्यायवाची शब्दों में भी 'उत्तरीय' की परिगणना की जाती है ।११ जन संस्कृत महाकाव्यों में स्त्रियों के स्तनादि ऊपरी प्रदेशों में पहने जाने वाले वस्त्र के लिए 'उत्तरीय' की संज्ञा प्रसिद्ध थी । १२ धर्मशर्माभ्युदय के टीकाकार ने भी ऊपरी भाग तथा अधोभाग के वस्त्रों के अर्थ में ही क्रमश: 'उत्तरीय' तथा 'अन्तरीय' का प्रयोग किया है। 3
१. चन्द्र०, ७.२३ २. चन्द्र०, ७.२३ तथा विद्वन्मनो० टीका, पृ० १७६ ३. वही ४. वराङ्ग०, ७.२१, द्विस०, १३३ ५. चन्द्र०, १३.४१ ६. वरांग०, ७.२१, द्विस०, १.३३ ७. चन्द्र०, ७.२३ पर विद्वन्मनो० टीका, पृ० १७६ ८. द्विस०, १८.४, धर्म०, १५.३१, नेमि०, वसन्त, ७.१० ६. उपरितनवस्त्रम् । -धर्म०, १५.३१ पर यशस्कोतिकृत सन्देहध्वान्त
दीपिका, टीका, पृ० २३५ १०. वसन्त ७.१० ११. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४५ १२. उत्तरीयमपकर्षति नाथे प्रावरिष्ट हृदयं स्वकराभ्याम् ।
-धर्म०, १५.३१ १३. धर्म०, १५.३१ पर यशस्कीतिकृत सन्देह० टोका०, पृ० २३५