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प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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से प्रसिद्ध था।' सिद्धान्तत: जैन धर्म की मान्यता के अनुसार मांस खाना निषिद्ध था। राजा कुमारपाल द्वारा सम्पूर्ण राज्य में 'मांस-भक्षण' पर एक सर पूर्ण प्रतिबन्ध भी लगा दिया गया था । पेय पदार्थ
__ भोजन सम्बन्धी पेय पदार्थों में दूध, तक्र४ (छांछ), इक्षु रस,५ नारिकेल रस, फान्ट आदि विशेष रूप से प्रचलित थे। इनमें से भी फाण्ट अलमिश्रित विशेष प्रकार का कसैला (कषाय) पेय होता था तथा कुछ उष्ण होने पर इसका पान किया जाता था ।
मदिरा सेवन
जैन संस्कृत महाकाव्यों के अनुसार आलोच्य काल में मदिरा पान का विशेष प्रचलन रहा था । 'अरिष्ट' 'मैरेय', 'सुरा', 'मधु', 'कादम्बरी' आदि विभिन्न प्रकार की मदिरामों का उल्लेख भी पाया है। १० मदिरा का प्रयोग पुरुष तो करते ही थे, साथ ही स्त्रियों में भी इसका विशेष प्रचलन था।१२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित रति-क्रीडा के सन्दर्भ में अनेक स्थलों पर मदिरा से मत्त स्त्रियों द्वारा काम-चेष्टाएं करने का वर्णन पाया है ।१३ धर्मशर्माभ्युदय
१. द्वया०, १७.४१, तथा तु०-मासौदनो मांसमिश्र प्रोदनः । -अभयतिलक
गणिकृत टीका, पृ० ३५८ २. द्वया०, २०.१२ ३. वराङ्ग०, ६.३५, द्वया०, ८.६६, कीर्ति०, ८.२९ ४. वराङ्ग०, ६.३५, द्वया०, २.४८ ५. कीर्ति०, ६.१४ ६. चन्द्र०, १६.३१ ७. द्वया०, १५.१० 5. Narang, Dvayāśraya, p. 197 ६. द्विस०, सर्ग १७, धर्म०, सर्ग-१५, हम्मीर०, १३.८०-६४ १०. अरिष्टमैरेयसुरामधूनि कादम्बरीमद्यवरप्रसन्नाः । -वराङ्ग०, ७.१५
तथा तु०-स्त्रीभ्यो मैरेयमदविह्वलाः । -द्वया०, १७.१२७,
मैरेयपानच्युतचेतनानाम् । –कीर्ति०, ७.७७ ११. द्विस०, १७.६७, धर्म०, १५.१६ १२. धर्म०, १५.१०, १२, द्विस०; १७.५६ १३. धर्म०, १५.२६, ३१; द्विस०, १७.६०