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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
नामक प्रसिद्ध 'निगम' व्यापार के महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे ।' यह भी सूचना मिलती है कि इन व्यापारिक निगमों की 'निगम-सभा' नामक 'सङ्गठित समिति' भी बनी हुई थी।
इस प्रकार रामायण में आए 'नेगम' शब्द द्वारा रामायणकालीन 'निगम' नामक प्रावासार्थक संस्थिति के अस्तित्व की सूचना मिलती है। 'पौर'-'जानपद' जिस प्रकार पुर-जनपद नामक नगरभेद की संस्थानों से सम्बद्ध थे उसी प्रकार रामायण का लेखक निवासार्थक 'निगम' से भी परिचित था। किन्तु रामायणकाल में पुर-जनपद के समान 'निगम' अत्यधिक लोकप्रिय नहीं हो पाए थे। संभवतः दक्षिण भारत में इन निगमों का विशेष प्रचलन था। पाणिनि प्रायः 'निगम' को वेद के अर्थ में प्रयुक्त करते हैं तथा कभी-कभी वेदेतर अर्थ में उन्होंने 'निगमाः' का भी प्रयोग किया है। महाभारत, अर्थशास्त्र जोकि भारतीय राजशास्त्र के कोषग्रन्थ हैं, 'निगम' के विषय में मौन हैं। प्रावासार्थक 'निगम' के अस्तित्व के प्राचीनतम पुरातत्वशास्त्रीय ऐतिहासिक प्रमाण तृतीय शताब्दी ई० से पूर्ववर्ती नहीं । संभवतः महाभारत, अर्थशास्त्र तथा अष्टाध्यायी तृतीय शताब्दी ईस्वी-पूर्व से पूर्व निर्मित होने के कारण 'निगम' नामक ग्रामों अथवा नगरों से परिचित न हों। वैसे उपर्युक्त सभी ग्रन्थों की कालसीमा सुनिश्चित न होने के कारण इस सम्बन्ध में कोई निश्चित मान्यता स्थापित नहीं की जा सकती है । केवल इतना स्पष्ट होता है कि रामायण, जातक प्रादि प्राचीन बौद्ध साहित्य, तथा जैन पागम ग्रन्थों में 'निगम' पुर-जनपद के साथ प्रयुक्त होने के कारण निवासार्थक ही था। ईस्वी पूर्व के सभी शिलालेखों, मुद्राभिलेखों तथा सिक्कों से इस तथ्य की पुष्टि की जा सकती है। 'नगम' का अर्थ रामायण में 'निगम से सम्बद्ध व्यक्ति' था। बौद्ध साहित्य में 'नगम' का अर्थ एक अोर शासक (नगरसेठ) था तो दूसरी ओर नगर-सेठों का व्यवसाय मूलतः व्यापार होने के कारण व्यापारी वर्ग के लिए भी इस शब्द का सामान्य प्रयोग होता था । बौद्ध निकाय ग्रन्थों में 'निगम' छोटे-छोटे कस्बों के समान थे जिनमें कुरु, शाक्य आदि जातियां निवास करती थीं । बौद्ध युग में 'निगम' प्रार्थिक एवं राजनैतिक दृष्टि से पिछड़े हुए थे क्योंकि इन निगमों में आवागमन आदि की भी समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई थी। भारत के स्वर्ण युग गुप्त काल में निगमों का विकास हुआ तथा दसवीं शताब्दी तक इन निगमों को मार्ग प्रादि की उन्नत नागरिक सुविधाएं प्रदान कर दी गई थीं । फलतः इस युग में 'निगम' कृषि उत्पादन की दिशा में भी बहुत समृद्ध होने लगे थे ।
१. २.
Puri, B.N., History of Indian Administration, Vol. I, p. 162 Ep. Ind., VIII, No. 12