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________________ २७६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज हैं। 'श्रेष्ठी' 'सार्थवाह' आदि पदविशेष जनपदों तथा अन्य शासन-संस्थानों में भी हो सकते हैं इसलिए अन्त में 'निगम' शब्द को जोड़कर इन अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट किया गया है । 'नगम'' तथा 'जानपद'२ नाम से अङ्कित मुहरें क्रमशः तक्षशिला तथा नालन्दा से भी प्राप्त हुई हैं। ऐतिहासिकों के अनुसार नालन्दा से प्राप्त 'जानपद' नाम की मुद्राओं को नालन्दा विश्वविद्यालय के अधिकारी वर्ग कार्यालयीय पत्रों को मुद्रित करने के काम में लाते थे। इसी प्रकार 'निगम विशेष के उच्चशासनाधिकारी 'नगम' भी 'नेगमा' (संस्कृत-'नेगमाः') शब्दों से उत्कीर्ण मुद्राओं से राजकीय पत्रों को मुद्रित करते थे । इसी परिप्रेक्ष्य में बसाढ़ की 'श्रेष्ठि-सार्थवाह-कुलिक-निगम' प्रादि मुद्राओं के अर्थ को भी समझना चाहिए । इस प्रकार श्रेष्ठी' 'सार्थवाह' 'कुलिक' प्रादि शासनाधिकारी थे, तथा निगम से सम्बद्ध थे । 'श्रेष्ठिनिगमस्य' का भी सीधा अर्थ 'निगम का सेठ' है। गुप्तकाल में इसी प्रकार के 'नगरश्रेष्ठी' नामक एक पद का भी उल्लेख मिलता है । बृहस्पतिस्मृति द्वारा प्रतिपादित चार प्रकार की सभाओं में 'मुद्रिता सभा' का उल्लेख हुआ है। कात्यायन के अनुसार 'नगम' लोग राजमुद्रा से महत्त्वपूर्ण व्यवहारों आदि को मुद्रित करते थे। ___इस प्रकार पुरातत्वीय-मुद्राभिलेखों, सिक्कों तथा उत्कीर्ण-लेखों से प्राप्त प्रमाणों के श्राधार पर तृतीय-चतुर्थ शताब्दी ई० से लेकर गुप्तकाल तक की शासन १. Cunningham, Coins of Ancient India, (Plate III), p. 63 २. Memoirs of the Archaeological Survey of India, No. 66, p. 45. ३. Alteker, State & Govt., p. 229 ४. A.S.I.. Ann. Rep., 1913-14, Seal No. 282B, p. 139 ५. सत्यकेतु विद्यालङ्कार, प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था और राजशास्त्र, पृ० २८० ६. तु०- प्रतिष्ठिताप्रतिष्ठिता च मुद्रिता शासिता तथा । चतुविधा सभा प्रोक्ता सभ्याश्चैव तथाविधाः ।। __ मुद्रिताऽध्यक्षसंयुक्ता राजयुक्ता च शासिता ॥ - बृहस्पतिस्मृति, १.५७-५८ ७. नगमानुमतेनैव मुद्रितं राजमुद्रया। नैगमस्थैस्तु यत्कार्य लिखितं यव्यवस्थितम् ।। (कात्यायन) -(पृथ्वीचन्द्रप्रणीतधर्मतत्त्वकलानिधि), व्यवहारप्रकाश, ७.१.१ सम्पा० जयकृष्ण शर्मा, बम्बई, १९६२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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