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________________ २७४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज १५०ईस्वी के 'रुद्रदामन शिलालेख' के 'उपसष्ट पूर्वनगरनिगमजनपदानाम्'' में आए 'निगम' का 'नगरवणिक्संघपरिषद्'२ अर्थात् 'नगर के व्यापारियों की सङ्गठित समिति' अर्थ भी सुग्राह्य नहीं। नगर तथा जनपद के साथ प्रयुक्त हुए 'निगम' का अर्थ ग्राम ही करना चाहिए। क्योंकि राज्य के महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विभाजन की ओर संकेत करते हुए उत्कीर्ण लेखक का अभिप्राय नगर, निगम, तथा जनपद से ही है। ____ कुषाणकालीन भीटा से प्राप्त चार मिट्टी के मुद्राभिलेखों में 'निगमस'3 तथा पांचवीं गुप्तकालीन मुद्राभिलेख 'निगमस्य' में पाए निगम' को ग्राम अथवा नगर के रूप में भी स्वीकार किया जा सकता है । ईस्वी की पांच-छः शताब्दियों में 'निगम' का स्वरूप ग्राम तथा नगर के रूप में रहा होगा अथवा 'सङ्गठितसभा' के रूप में ? ऐतिहासिकों के लिए यह निश्चित करना अभी संभव नहीं हो पाया। अधिकांश इतिहासकार इस युग में 'निगम' को 'नगर की सङ्गठित समिति' (Town Corporation) के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। १२० ईस्वी के नासिक शिलालेख में 'निगमसभा' का स्पष्ट रूप से उल्लेख आया है-'एत च स्रावित (नि) गमसभाय निबन्ध च फलकवारे चरित्रेति ।'' इस शिलालेख में उषवदत्त द्वारा दिए गए सभी दान को 'निगमसभा' में पंजीकृत करने का भी उल्लेख हुआ है । इस शिलालेख में पाए 'निगमसभा' का अल्टेकर 'Town Council' (नगरसभा) अयं करते हैं, तो Epigraphla Indica में इसका Town-Hall (नगरभवन) अर्थ निर्दिष्ट है । किन्तु राधाकुमुद मुकर्जी द्वारा इस 9. Jūnāgarh Rock Inscription of Rudradāman I (150 A. D.) No. 67, Sircar, D.C., Select Inscription, Calcutta, 1965, p. 178. २. तुलनीय, उत्कीर्णलेखांजलि, सम्पा० जयचन्द्र विद्यालङ्कार, वाराणसी, वि० सं० २०२०, रुद्रदामन शिलालेख, प० ६, पाद० टि० ४० ३. Arch. Surv. of India, Ann. Rep. 1911-12, p. 56. ४. वही ५. Majumdar, Corporate Life, pp. 132-36 ६. Nasic Cave Inscriptions of the Time of Nahapana (119-24 A,D.), No. 58; Sircar, D.C., Select Inscription, p. 164. ७. Altekar, State & Govt., p. 223 ८. 'And all this has been proclaimed (and) registered at the town hall' at the record office according to custom,' -Epigraphia Indica, Vol. VIII (No. 8), p. 83.
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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