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खेट २५८, द्रोणमुख २६०, मडम्ब २६१, पत्तन २६१, कर्बट २६२, सम्बाध २६३, घोष २६४ । पावासीय संस्थिति के रूप में निगम-एक पुविवेचन
२६४-२६१ रामायण २६६, अष्टाध्यायी, महाभारत तथा अर्थशास्त्र २७१, अभिलेख, मुद्राभिलेख तथा सिक्के २७२, बौद्ध साहित्य २७७, जैन साहित्य २७६, कोष ग्रन्थ २८२, वास्तुशास्त्र के ग्रन्थ २८५, स्मृतिग्रन्थ एवं निबन्ध ग्रन्थ २८७,
दक्षिण भारत के व्यापारिक निगम २८८ ।। २. खानपान
२६२-२६६ विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ २६२, प्रोदन २६२, करम्भक २६२, मण्डक २९२, मण्डिका २६३, खाद्य २६३, अपूपिका २६३, मर्मराल २६३, वटक २६३, तीमन २९३, इड्डुरिका २६४, मोदक २६४, अन्य भोज्य पदार्थ २६४,
मांस भक्षण २६४, पेय पदार्थ २६५, मदिरा सेवन २६५। ३. वेशभूषा
२६६-३१२ वस्त्रों के विविध प्रकार २६६, सिले हुए वस्त्र २६७, सामान्य वस्त्र २६८, स्त्रियों के वस्त्र २६८, स्त्रियों के सौन्दर्य प्रसाधन ३००, स्त्रियों के आभूषण ३०१, सिर के प्राभूषण ३०३, कर्णाभूषण ३०४, कण्ठाभूषण ३०५, कराभूषण ३०७, कटिप्रदेश के आभूषण ३०६, पादाभूषण, ३१० निष्कर्ष ३१० ।
षष्ठ अध्याय धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं ३१३-४०६ १. धार्मिक जन-जीवन
३१३-३७५ धर्म की सामाजिक अनुप्रेरणा ३१३, जैन धर्म : समाजोन्मुखी मूल्य एवं . परम्पराएं ३१५, ब्राह्मण व्यवस्था के सैद्धान्तिक विरोध का समाजशास्त्र
३१५, वर्णव्यवस्था का विरोध ३१६, जाति व्यवस्था का विरोध ३१७, वेदप्रमाण्य का विरोध ३१७, पुरोहितवाद का विरोध ३१८, देवोपासना का विरोध ३१८, जैन धर्म को समन्वयमूलक समाजशास्त्रीय प्रवृत्तियां ३१६, अालोच्य युग में जैन धर्म की राजनैतिक लोकप्रियता ३२२, जैन गृहस्थ धर्म एवं व्रताचरण ३२३, जैनानुमोदित 'धर्म' का स्वरूप ३:३, द्विविध धर्म सागार एवं अनागार ३१४, सागार एवं अनागार धर्म में अन्तर ३२५, द्वादश व्रताचरण ३२६, राजा कुमारपाल द्वारा जैन व्रतों का पालन ३३०, धार्मिक कर्मकाण्ड एवं पूजा पद्धति ३३२, पंचोपचार एवं अष्टविध पूजन ३३२, जिनेन्द्रपूजा ३३३, प्रतिमा अभिषेक ३३३, कर्मकाण्डपरक विधियां ३३५, पूजा सामग्री ३३५, विविध पूजा द्रव्यों का अनुष्ठानफल ३३६, पूजा-द्रव्य के रूप में