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________________ २१६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज है।' 'कालागरु' इस युग में शरीर-लेप के रूप में तथा घरों में जलाये जाने वाले घूप के रूप में विशेष रूप से प्रसिद्ध रहा था। सुपारी, इलायची, लोंग, कङ्कोल, कपूर, केशर, ताम्बूल, नारियल, कस्तूरी आदि बहुमूल्य मसाले तथा आस्वाद्य पदार्थों का उच्च वर्ग के लोगों में विशेष रूप से सेवन किया जाता था। फूलों तथा फलों के विविध प्रकार के रसों का सार निकालकर शर्बत अथवा मदिरा आदि बनाने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। इस सन्दर्भ में 'अरिष्ट' (विधिपूर्वक निकाला गया फूलों-फलों का रस) 'मरेय' (रासायनिक विधि से निकाला गया फूलों-फलों का रस) 'सुरा' (फलों को सड़ाकर निकाला गया रस) 'मधु' (मधु-मक्खियों द्वारा संचित पुष्प-पराग) कादम्बरी' (एक विशेष प्रकार की मदिरा) आदि फूलों-फलों से निर्मित 'रसों' तथा मदिरानों के उल्लेख तत्कालीन उद्यानों से सम्बद्ध उद्योगों पर भी प्रकाश डालते हैं। इन सभी तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि वृक्षों; फलों पुष्पों आदि का भी आर्थिक दृष्टि से उतना ही महत्त्व था जितना कृषि आदि का। परिणामतः इन्हें 'निधि' के रूप में भी स्वीकार किया जाने लगा था। १. प्रयच्छ मूल्यान्मणिकम्बलं च गोशीर्षकं चेत्यभिजल्पितस्तैः । वृद्धो वरिणग् वस्तुयुगस्य मूल्यमेकैकदीनारकलक्षमूचे ॥ -पद्मा०, ६.५६ तथा गोशीर्षवृक्षस्तरुषु प्रधानस्तथा भवानां मनुजत्वमाहुः । -वराङ्ग०, ८.१० २. कालागरुप्रततधूपवहाश्च गेहा । -वराङ्ग०, १.२५ ___कपूर-कृष्णागरुरकुनाभिः । —पद्मा०, ३.१३१ ३. लवङ्गकङ्कोलककुङ्कमानाम् । -वराङ्ग०, ७.६ तथा तु० धर्म०, ३.३०, वर्ध०, ४.७, पद्मा०, ३.१६४ ४. अरिष्टमैरेयसुरामधूनि कादम्बरीमद्यवरप्रसन्नाः । मदावहानासवनातियोग्यान्मद्याङ्ग वृक्षाः सततं फलन्ति ॥ -वराङ्ग०, ७.१५ ५, लाक्षाविक्रयणम् - स्वयोनिवृक्षादुद्धरणेन टङ्गणमनःशिलासकूमाप्रभृतीनां बाह्यजीवघातहेतुत्वेन गुग्गुलिकाया घातकीपुष्पत्वचश्च मद्यहेतुत्वेन तद्विक्रयस्य पापाश्रयत्वात् । (सागारधर्मामृत, ५.२१-२३ पर टीका), -जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ० ४२२ से उद्धृत। ६ वृक्षगुल्मतिकाम समुद्भवं...पुष्पपल्लवमथोत्तमं फलं तस्य कालनिधिरीप्सितं ददौ । -चन्द्र०, ७.२१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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