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________________ युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था १६७ धर्म समझते आए थे । किन्तु मध्यकालीन भारत के सामाजिक मूल्य धर्म-दर्शन से कुछ हटकर लौकिक सुखों को ओर अधिक झुक गए थे। इसी का परिणाम था कि भारतीय सेना में भोगविलास के मूल्य सामाजिक दृष्टि से भी स्वीकार कर लिये गए । प्रद्युम्नचरित महाकाव्य में पाए एक महत्त्वपूर्ण उल्लेख से यह ज्ञात होता है कि भगवद्गीता के अनुसार युद्ध में मरने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है-यह धारणा अब हेय हो चुकी थी। प्रद्युम्नचरित महाकाव्य में इस तथ्य की ओर संकेत करते हुए यह भी कहा गहा है- "युद्ध से न तो स्वर्ग मिलता है और न ही मोक्ष, केवल मात्र कीर्ति ही प्राप्त हो सकती है। किन्तु मृत्यु के उपरान्त इस कीर्ति का भी क्या महत्त्व रह जाता है। इस कारण अपनी सुन्दर स्त्रियों तथा पुत्रों आदि को छोड़कर युद्ध में जाना व्यर्थ है।"१ मध्यकालीन भारतवर्ष से सम्बन्धित प्रद्युम्नचरित का यह उद्धरण तत्कालीन युद्ध-विषयक मान्यता का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार भारतीय सेना की शक्ति के क्षीण होने के कारणों में इस बदली हुई मध्यकालीन युद्ध भावना का भी विशेष प्रभाव पड़ा था। निष्कर्ष ___ इस प्रकार भारतीय सेना की विविध गतिविधियों तथा ऐतिहासिकों की प्रतिक्रियाओं के आकलनों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मध्यकालीन सैन्य व्यवस्था बाह्य रूप से शक्तिशाली रही थी किन्तु राष्ट्रीय एकता का प्रभाव तथा सामन्तवादी प्रवृत्तियों का प्राबल्य अनेक युद्धों का कारण बना । कृत्रिम कारणों को लेकर लड़े जाने वाले युद्धों का मुख्य प्रयोजन राजाओं की सैन्य शक्ति प्रदर्शन ही था। एक बार किसी राजा द्वारा युद्ध क्षेत्र में अपना पराक्रम दिखा देने के बाद अनेक छोटे-छोटे सामन्त राजाओं को बिना युद्ध किए ही अपने अधीन कर लिया जा सकता था। राजनैतिक सङ्गठन कभी भी एक होकर किसी शक्तिशाली राजा को पराजित भी कर सकते थे। इस कारण प्रत्येक राजा युद्धों की तैयारी एवं सैनिक शक्ति के निर्माण में ही अधिक व्यस्त रहा था। युद्धकला तथा युद्धनीति के अवसर पर केवल मात्र दिखावे के लिये प्राचीन परम्पराओं तथा युद्ध धर्मों का प्रयोग किया जाता था यहाँ तक कि छोटे-छोटे कारणों को लेकर युद्ध करना, निराश होने की भैप मिटाने के लिए ईर्ष्यावश स्वयंवर में विजयी राजकुमार के साथ युद्ध करना, शास्त्रों के अनुसार दूत के साथ भद्र व्यवहार करने की परम्परागत मान्यताओं को तोड़कर उसके साथ अभद्र व्यवहार करना आदि कुछ ऐसे तथ्य हैं जो मध्यकालीन-भारतीय राजाओं की कुटिल १. युद्धाद् स्वर्गो नाप्यते नापि मोक्षः कीर्त्या किं वा साध्यमाचक्ष्व मृत्वा । योषा मुक्त्वा सत्सुताश्चन्द्रवक्त्रा मा युद्धयस्त्वं याहि मा स्था: पुरो मे ॥ -प्रद्युम्न०, १०.१४
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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