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________________ १७८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज हाथ होता था ।" नीतिप्रकाशिका के व्याख्याकार सीताराम ने इसकी बृहद् द्वारों को बन्द रखने वाले प्रतिबन्धक शस्त्र के रूप में व्याख्या की है। ४ अनुसार इस दीक्षितार जा सकती ४३. शतघ्नी ३ - यह एक प्राचीन श्रायुध रहा है । इसके स्वरूप के विषय में मतभेद है । शब्दार्थ की दृष्टि से एक समय में सौ व्यक्तियों के संहार करने की इस प्रयुध में क्षमता थी । मजूमदार महोदय के यन्त्र को दुर्ग की दीवारों में स्थापित किया जाता था । के अनुसार आधुनिक तोप से इसकी तुलना की है । " कालिदास ने रघुवंश में इस प्रयुध का उल्लेख किया है । टीकाकार मल्लिनाथ ने 'केशव' को उद्धृत करते हुए चार हाथ लम्बे लौह कण्टकों से संवलित यष्टि विशेष के रूप में 'शतघ्नी' की परिभाषा' दी है । ७ 'वैजयन्ती' 5 कार ने इसे 'गदा' सदृश कहा है तो नीतिप्रकाशिका के अनुसार यह 'मुद्गर' सदृश श्रायुध था तथा 'मूठ' ( त्सरु ) से युक्त था । " 'शतघ्नी' को सामान्यतया सभी ने 'कांटेदार ' ( कण्टकयुक्त) श्रायुध माना है । (ग) प्रमुक्त वर्ग के अन्य आयुध ४४. शूल' ४५. त्रिशूल १२ - तीन कांटों वाली लम्बी यष्टि | १३ ४६. शंकु १४ – विशेष प्रकार का भाला । १०. - तीक्ष्ण मुख वाली यष्टि | ११ १. नीति०, ५.४५ २. परिघो नाम बृहत्कवाटोद्घाटनप्रतिबन्धककार्यप्रर्गलविशेष: । वही, ५ . ४५ ३. द्वया०, ११.४६ ४. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० १६५ ५. Dikshitar, War in Ancient India, p. 115 ६. रघु०, १२.६५ ७. रघु०, १२.६५ पर मल्लिनाथटीका में उद्धृत 'केशव' ८. नीति०, ५.४८ पर सीनाराम कृत टीका में उद्धृत 'वैजयन्ती' ६. नीति०, ५.४८ १०. वराङ्ग०, १७.७७, हम्मीर० ११.६१ ११. अर्थशास्त्र, २.१८, हिन्दी अनुवाद ( रामतेज पाण्डेय), पृ० १८० १२. वराङ्ग०, १४.१५ १३. Narang, Dvyāśraya, p. 178. १४. चन्द्र०, १५.८६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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