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दशकों से कम नहीं रही है । इस अवधि में मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो० सत्यव्रत शास्त्री, प्रो० रसिक विहारी जोशी, डा० एस० एस० राणा तथा प्रो० बी० एम० चतुर्वेदी की सत्प्रेरणाएं तथा उपयोगी सुझाव समयसमय पर मिलते रहे हैं, उनके प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । दिल्ली विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग ने इस शोध प्रबन्ध के प्रकाशन की अनुमति प्रदान करने के साथ परीक्षकों के जो बहुमूल्य सुझाव भी मुझे प्रदान किए उसके लिए मैं परीक्षा विभाग का धन्यवाद प्रकट करता हूँ । प्रस्तुत ग्रन्थ की अनेक शोध समस्याओं की संस्कृत विभाग की 'संस्कृत शोध परिषद्' की संगोष्ठियों में चर्चा-परिचर्चा हुई है । इन अवसरों पर प्रो० कृष्णलाल, प्रो० पुष्पेन्द्र कुमार, प्रो० वाचस्पति उपाध्याय, प्रो० सत्यपाल नारंग, डा० श्रवनीन्द्र कुमार, डा० आर० एस० नागर, डा० बी० आर० शर्मा, डा० रामाश्रय शर्मा आदि अनेक विद्वानों की बहुमूल्य सम्मतियों से मुझे लाभ हुआ है उनके प्रति भी मैं अपना प्रभार प्रकट करता हूँ ।
भारतीय सामन्तवाद के प्रथम प्रस्तोता तथा भारत के सामाजिक श्रीर आर्थिक इतिहास को एक नई दिशा प्रदान करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त इतिहासकार प्रो० रामशरण शर्मा के बहुमूल्य सुझावों का ही प्रतिफल है कि मैं प्रस्तुत ग्रन्थ की अनेक ऐतिहासिक गुत्थियों को सुलझा सका। प्रो० शर्मा ने इस ग्रन्थ का प्रमुख लिखकर मेरे इस तुच्छ प्रयास को जो गौरवान्वित किया है उसके लिए मैं उनका विशेष प्रभारी रहूंगा ।
प्रो० दयानन्द भार्गव, वर्तमान अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय के सान्निध्य में मैंने रामजस कालेज में भारतीय विद्या के प्रथम पाठ 'ईशावास्यमिदं सर्वम्' से लेकर 'तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः' तक के समाजशास्त्र की शिक्षा पाई है । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध की समस्या के सर्जक भी वे ही हैं तथा उन्हीं के कुशल मार्ग दर्शन से मैं इस जटिल सारस्वत अनुष्ठान का नियोजन कर का हूँ । इन सबके लिए मैं उनका सदैव ऋणी ही रहूंगा ।
संस्कृत विभाग, रामजस कालेज के सहयोगी डॉ० सूर्यकान्त बाली, डा० रघुवीर वेदालङ्कार, तथा डॉ० शरदलता शर्मा की सत्प्रेरणा मुझे मिलती रही है | इतिहास विभाग के डा० जी० बी० उप्रेती तथा श्री सुधाकर सिंह से शोध प्रबन्ध से सम्बन्धित अनेक समस्याओं पर विचार विमर्श हुआ है । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, प्राचार्य, रामजस कालेज, दिल्ली, हिन्दी अकादमी के सचिव डॉ० नारायण दत्त पालीवाल तथा संस्कृत अकादमी के सचिव श्री श्रीकृष्ण सेमवाल के साथ प्राचीन भारत की अनेक सामाजिक समस्याओं के विषय में चर्चा हुई है । इसके लिए मैं उनका हृदय से धन्यवाद प्रकट करता हूँ । श्राचार्य रत्न श्री देशभूषण