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________________ युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था १५७ अश्वारोही के अश्वारोही से हुए युद्ध को आदर्श माना जाता था जिसमें प्रत्येक योद्धा को अपनी निपुणता दिखाने का अवसर मिल जाता था।' निःशस्त्र योद्धा पर शस्त्र उठाना शास्त्रानुकूल नहीं था। युद्ध प्रयाण के अवसर पर शकुन-अपशकुन विचार युद्ध प्रयाण के लिए मुहूर्त देखने की परिपाटी थी। सम्पूर्ण सेना को छत्रों प्रायुधों तथा पताकानों से सुसज्जित किया जाता था। मेरी, पटह आदि वाद्ययन्त्रों के महानिनाद से सम्पूर्ण नगरवासियों तथा युद्ध में जाने वाले सैनिकों को प्रस्थान करने की सूचना से अवगत कराया जाता था। सभी नगरवासी लोग राजा की जयजयकार करते हुए विजय की शुभकामनाएं प्रकट करते थे। भाटचारण, आदि भी राजा की विजय कामना के गीतों का उच्च स्वर में गायन करते थे। इस अवसर पर माताएं अपने पुत्रों के मस्तक पर तिलक भी लगाती थीं। शकुन-अपशकुन-नगरवासियों को युद्ध प्रयाण की सूचना मिल जाने पर, वे मार्ग में किसी प्रकार के शुभ शकुनों के सम्पादनार्थ-जल एवं दही से भरे घड़ों तथा अन्य उपहारों से युक्त होकर राजा तथा सेना का अभिनन्दन करते थे। युद्ध प्रयाण के अवसर पर प्राकृतिक शकुनों एवं अपशकुनों पर विशेष विचार किया जाता था, राजा के बाई और शुगाली एवं गधे का शब्द करना, खंजरीट (भारद्वाज) पक्षी का राजा की परिक्रमा करना, कौए द्वारा दूध वाले वृक्ष में बैठकर ध्वनि करना, अनुकूल वायु का चलना,१० दही मिलना,१ जल के घड़े भरकर ले जाती १. पदगः पदगं सादी सादिनं रथिनं रथी। निषादिनं निषादी, चेत्यवृण्वन् सैनिका मिथः ॥ हम्मीर० ६.११६, तथा बराङ्ग०, १७.७६, जयन्त०, १०.४० २. वराङ्ग०, १७.५० ३. जयन्त०, ६.६७ ४. तु०-वरांग०, १४.११; चन्द्र०, ४.४६, १५.२०; द्विस०, १४.७; धर्म०, ६.७८ ५. चन्द्र०, १५.२५, पद्मा०, १७.१०३ ६. वराङ्ग०, २०.५४ ७. वही, २०.५४ ८. पद्मा०, १७.१०३; हम्मीर०, १२.१० ६. हम्मीर०, १२.२६; चन्द्र०, १३.४१ १०. चन्द्र०, १५.२७-२८ तथा ४.४६ ११. वही, १३.४१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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