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________________ दार्शनिक और प्रभावशाली धर्माचार्य भी थे। जैन धर्म और दर्शन की इन युगाचार्यों ने समसामयिक सन्दर्भो में नवीन व्याख्याएं भी प्रस्तुत की हैं। ये महाकाव्यकार किसी राज्याश्रय से प्रेरित होकर अपना काव्यकर्म सम्पादित नहीं कर रहे थे बल्कि जन सामान्य की अनुभूतियों से संस्पर्श पाकर विभिन्न प्रान्तों, नगरों, गांवों की स्थानीय लोकचेतना का ही साहित्यीकरण कर रहे थे। आदर्शों और समाज मूल्यों की पुरातन ऐतिहासिकता तथा युग परिस्थितियों की समसामयिक नूतन इतिहास-दृष्टि का मणिकांचनसंयोग इन महाकाव्यों में पिरोया गया है। इन महाकाव्यों के इतिहास सत्य मध्यकालीन मानव तथा उसके संस्थागत पर्यावरण का वास्तविक अंकन करते हैं । अभिलेखीय तथा पुरातत्त्वीय साक्ष्यों के आधार पर मध्यकालीन इतिहास की जो अनेक गुत्थियां नहीं सुलझाई जा सकी हैं, जैन महाकाव्यों के साहित्यिक साक्ष्य उनका प्रांखों-देखा विवरण उपस्थित करते हैं। भारतीय इतिहास में 'निगम' के स्वरूप निर्धारण की समस्या एक ऐसी ही उलझी हुई समस्या है परन्तु जैन महाकाव्यों के साक्ष्यों से 'निगम' समस्या का पूर्ण समाधान हो जाता है। मध्यकालीन समाज के इतिहास लेखन हेतु स्रोत-सामग्री के के अभाव का जो संकट इतिहास जगत् में छाया हुआ है जैन महाकाव्यों की वैविध्यपूर्ण सामग्री उस प्रभाव की पूर्ति करती है तथा इतिहास लेखन की दिशा में नए आयामों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करती है । प्रस्तुत ग्रन्थ दिल्ली विश्वविद्यालय की पी-एच० डी० उपाधि के लिए सन् १९७७ में स्वीकृत शोध प्रबन्ध "जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्रतिपादित सामाजिक परिस्थितियां" का किञ्चित् परिवद्धित और संशोधित रूप है। इस ग्रन्थ में आठवीं से चौदहवीं शती ई० तक रचित जैन संस्कृत महाकाव्यों के आधार पर मध्यकालीन भारत के सामाजिक इतिहास के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। __ प्रस्तुत ग्रन्थ नौ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में साहित्य और समाज के सैद्धान्तिक विवेचन सहित समाजशास्त्र और साहित्यशास्त्र को समाजधर्मी प्रवृतियों, भारतीय साहित्य के निर्माण की पृष्ठभूमि तथा महाकाव्य साहित्य के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक चेतना के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। इसी अध्याय में जैन संस्कृत महाकाव्यों के शिल्पवैधानिक स्वरूप का विश्लेषण करते हुए पालोच्य महाकाव्यों का परिचय भी दिया गया है। द्वितीय अध्याय राजनैतिक परिस्थितियों से सम्बद्ध है जिसमें शासन तन्त्र के विविध पक्ष, उत्तराधिकार, मंत्रिमंडल कोषसंग्रहण, न्यायव्यवस्था, केन्द्रीय तथा प्रान्तीय प्रशासन, ग्राम संगठन प्रादि से सम्बन्धित तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं। तृतीय अध्याय में युद्ध नीति, सेना का स्वरूप, युद्ध भेद, विविध प्रकार के प्रायुधों का वर्णन आदि सैन्य व्यवस्था से सम्बन्धित चर्चा की गई है।
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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