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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
राजकीय उत्सवों के अवसर पर याचकों को दान आदि देने का कार्य करते थे। बृहत्कथाकोश के 'कडारपिङ्गकथानक' में 'महत्तर' को मन्त्री के रूप में भी वर्णित किया गया है।
इस प्रकार महत्तर एवं महत्तम सम्बन्धी उपर्युक्त साहित्यक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों के प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'महत्तर' ग्राम संगठन से सम्बन्धित एक अधिकारी विशेष था । 'महत्तर' राज्य द्वारा नियुक्त किया जाता था अथवा नहीं इसका कोई स्पष्ट उलेख नहीं मिलता किन्तु मध्यकालीन आर्थिक व्यवस्था में ‘महत्तर' की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। वह ग्राम सङ्गठन के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में राजा तथा उसकी शासन व्यवस्था से घनिष्ठ रूप में सम्बद्ध था। पांचवीं शताब्दी ई० के उत्तरवर्ती अभिलेखीय साक्ष्यों में 'महत्तर' तथा 'महत्तम' के उल्लेख मिलते हैं जिनका सम्बन्ध प्रधानतः राजाओं द्वारा भूमिदान आदि के व्यवहारों से रहा था। इतिहासकारों द्वारा प्रतिपादित यह मान्यता कि हवीं शताब्दी ई. के उत्तरार्ध के उपरान्त ‘महत्तर' के स्थान पर 'महत्तम' का प्रयोग होने लगा था, एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है तथा युगीन सामन्तवादी राज्य व्यवस्था के व्यावहारिक पक्ष पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है । ‘महत्तर' का ‘महत्तम' के रूप में स्थानांतरण होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि नवीं शताब्दी ई० में पालवंशीय शासन व्यवस्था में 'उत्तम' नामक एक दूसरे ग्राम सङ्गठन के अधिकारी का अस्तित्व आ चुका था । २ 'उत्तम' की तुलना में 'महत्तर' की अपेक्षा ‘महत्तम' अधिक युक्तिसङ्गत पड़ता था। इस कारण ‘उत्तम' नामक ग्राम मुखिया से कुछ बड़े पद वाला अधिकारी 'महत्तम' कहा जाने लगा था । पालवंशीय दान पत्रों में ‘महत्तर'/'महत्तम'| 'कुटुम्बी' आदि के उल्लेखों से यह भी द्योतित होता है कि सामान्य किसानों के लिए 'क्षेत्रकर' का प्रयोग किया गया है।४ 'कुटुम्बी' इन सामान्य किसानों की तुलना में
१. तु०-पट्टबन्धं विधायास्य कर्कण्डस्य नराधिपाः ।
मंत्रिणस्तलवर्गाश्च विनेयुः पदपङ्कजम् ॥ कनकं रजतं रत्नं तुरङ्गं करिवाहनम् । स ददुमहत्तरा हृष्टा याचकेभ्यो मुहुर्मुहुः ।
-बृहत्कथा०, १.५६,२६४-६५ तथा- सत्यं कडारपिङ्गोऽयं मन्महत्तरनन्दनः -वही, ८२.३५ २. I.A. Vol. XXIX, No. 7,1.31 ३. तु०-महत्तमोत्तमकुटुम्बी, Land grants of Mahipala 1,
___-LA. Vol, XIV, No 23, 11.41-42 8. Choudhari, Early Medieval Indiau Village, p. 220