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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज के लिए परराष्ट्रनीति निर्धारण करना भी दुष्कर होता जा रहा था क्योंकि समीपवर्ती राज्यों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता था कि इन राज्यों में कौन वास्तविक रूप से शक्तिशाली हैं तथा कौन केवल मात्र धमकियों द्वारा कोश एवं राज्य सीमा की वृद्धि में लगे हुए है ।" हर्षवर्धन के बाद भारत में एकच्छत्र राज्य के स्थान पर अनेकच्छत्र राज्यों में वृद्धि होने लगी थी। इन राज्यों में कुछ ऐसे राज्य भी थे जो परम्परा से किसी सामन्त अथवा महासामन्त राजा के अधीन थे किन्तु शनैः शनैः स्वतन्त्र होते जा रहे थे । इन राजनैतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में राजा तथा मंत्रिमण्डल नीति - प्रयोग के सम्बन्ध में एक मत नहीं था । विविध प्रकार की राजनैतिक व्याख्यानों द्वारा राजनीति के मौलिक सिद्धान्तों को स्पष्ट किया जाने लगा था । मुख्य रूप से परराष्ट्र नीति निर्धारण के अवसर पर तीन प्रकार की राजनैतिक चेतनाएं उभर कर आई हैं - ( १ ) युद्ध का समर्थन करना ( २ ) युद्ध का विरोध करना (३) छल कपट पूर्ण भेद नीति के प्रयोग के अनन्तर युद्ध करने अथवा न करने का निर्णय करना । उपर्युक्त तीन मौलिक विचारधाराम्रों के पूर्वाग्रह के कारण 'साम', 'दान', 'दण्ड' की व्याख्या भी प्रभावित हुई है । इस राजनैतिक पृष्ठभूमि को मध्य रखते हुए चतुविध उपायों की स्थिति इस प्रकार भी - ७८ १. साम -- परराष्ट्रनीति निर्धारण की दृष्टि से विशेषकर युद्ध करने अथवा सन्धि करने के विकल्पों में साम' के समर्थक विचारकों का मत था कि राजा को सदैव 'साम' के प्रयोग द्वारा शत्रु राजा से सन्धि कर लेनी चाहिए 3 चारों उपायों में 'साम' ही सर्वोत्कृष्ट उपाय है तथा धर्म तुल्य है । प्रायः 'दान' से धन १. तु० - ( क ) शौर्योद्धतावप्रति कोशदण्डी गृहीत सामन्तसमस्तसारौ । - वराङ्ग०, १६.६७ (ख) निजैः समस्तानभिभूय धामभिः समुद्धतान् मण्डलिनोऽतिदुःसहैः । - चन्द्र०, १.४७ वराङ्ग०, १६.७ (ख) न नाम प्रति सामन्तं त्रेसुः के संघवृत्तयः । द्विस०, १८.६४ (ग) प्रणमन्ति मदन्वयोद्भवं तव वंश्या इति पूर्वज स्थितिः । —चन्द्र०, १२.११ २. तु० - ( क ) गृहीत सामन्त समस्तसारो | (घ) ननु खड्गबलेन भुज्यते वसुधा न क्रमसंप्रकाशनैः । -- चन्द्र० १२.३१ ३. चन्द्र०, १२.७७ तथा वराङ्ग०, १६५३-५७ ४. तु० - बहुभद्रं न हि सामतः परम् । ५, हम्मीर०, ८.७८ — चन्द्र०, १२.८१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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