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दर्शन होते हैं । अनुष्टुप् छन्द में अनुप्रास की चमत्कारिक छटा के साथ काव्यशास्त्रीय लाक्षणिक विषय को परिगरिणत श्लोंकों में आबद्ध करके आपने एक अनूठा उपकार किया है ।
मुझे विश्वास है कि इन सरस श्लोकों को सहजता से स्मरण करके साहित्यिक जिज्ञासु लाभान्वित होंगे ।
आचार्यश्री की यह कृति प्रौढ़ काव्यशास्त्रीय अध्ययन के अभाव में भी शास्त्रीय मौलिक तत्त्वों के अभ्यास हेतु सार्थक सिद्ध होगी ।
आचार्यश्री विजय सुशील सूरीश्वरजी महाराज स्वस्थ रहते हुए चिरकाल तक धर्मप्रेरणा के साथ साहित्यजगत् की सेवा करते रहें - इसी सद्भावना के साथ |
स्थल
१०/३० चौ. हा. बोर्ड जोधपुर [राज. ] आसोज सुद- १० (विजयादशमी) मंगलवार दिनाङ्क १०-१०-८६
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लेखक
प्राचार्य शम्भुदयाल पाण्डेय [ व्याकरणाचार्य, साहित्यरत्न,
शिक्षाशास्त्री ]
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