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आचार्य कुन्तक ने कहा है - " सहज एवं आहार्य शोभा के उत्कर्ष से सुशोभित जहाँ परस्पर संकीर्णता को प्राप्त सुकुमार एवं विचित्र भाव प्रकाशित होते हैं, जहाँ माधुर्य, लावण्य, प्रसाद एवं आभिजात्य गुण वर्ग मध्यम वृत्ति का अवलम्बन कर, रचना के सौन्दर्य की किसी अपूर्व विशेषता को परिपुष्ट करते हैं तथा विभिन्न रुचि वाले सहृदयों की मन को हरण करने वाली सुकुमार एवं विचित्र मार्ग विभूतियों की जहाँ प्रतिस्पर्धा परिलक्षित होती है उसे मध्यममार्ग कहते हैं ।”१ तीनों मार्गों के कवियों का कुन्तक ने नामग्राहपूर्वक उल्लेख भी किया है
१. कालिदास तथा सर्वसेन आदि महाकवियों के काव्य सहज तथा सुकुमारमार्ग की शोभा से सम्वलित हैं ।
२. विचित्रमार्ग का सौन्दर्य बारण के 'हर्षचरित' में प्रचुर मात्रा में मिलता है । इसी प्रकार भवभूति, राजशेखर के ग्रन्थों तथा मुक्तकों में परिलक्षित होता है ।
३. सुकुमार - विचित्र उभयात्मक सम्वलित मध्यममार्ग के दर्शन मातृगुप्त, माञ्जीर, मायुराज आदि में प्राप्त होते हैं ।
१. वक्रोक्तिजीवितम् - प्रथमोन्मेषः ४ε-५१ ।
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