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एते चतुर्दशोपजातिभेदाः इन्द्रवज्रोपेन्द्रवज्रासम्भवा प्रदर्शिता, उपरि उपजातिभेदानामाद्यं यत् उदाहरणमुल्लिखितं तत्र एकैकलघुह्रासक्रमः बहुषु ग्रन्थेषु अयमेव क्रमः समादृतः। अतः तेनैव क्रमेण उपजातिभेदाः अत्रापि प्रदर्शिताः ।
किञ्च मूलकृतः 'अनन्तरोदीरित' इत्युदाहरणप्रदर्शनेन पादे सर्वगुरावाद्या लघु न्यस्य इति प्रस्तारपथप्रदर्शनेन प्रदर्शितः क्रमः एव सामञ्जस्यमावहति ।
अत्र पूर्वोक्तलक्षणेन पादद्वयेन यथायोगमेकद्विवारावृत्या निष्पत्तिर्विवक्षिता। न तु द्वाभ्यां एव वृत्तपूर्तिः पादद्वयमात्रघटितस्य वृत्तस्याभावात् । द्विवचनं लक्षणद्वयेन लक्षणया नेयम् । ताश्च तुरक्षरप्रस्तारवत् प्रस्तरे सत्याद्यन्तभेदयोः केवलेन्द्रवज्रोपेन्द्रवज्रा त्यागे चतुर्दश भवन्ति । यथा
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साहित्यरत्नमञ्जूषा-३६