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वर्णों से स्तुति रचना नहीं हुई उस वर्गों से भी अरिहंत परमात्मा की स्तुति रचना हो जाए - किसी को तेजहीन रख कर क्या लाभ ? उस वर्गों को भी परमात्मा के चरणों में समर्पित करके Dark कर दे ।
गुरुदेव की इच्छा-अनुज्ञा का अनुपालन किया । भाद्रपद धवला अष्टमी से ही नव्य स्तोत्र का प्रारंभ किया । गुरुदेव ने कहा था कि 'अरिहंत परमात्मा की स्तुतिरचना कर' अत: प्रत्येक स्तुति अरिहंत परमात्मा की बनाई । इसी कारण से स्तोत्र का नाम भी ‘अर्हत्स्तोत्रम्' रखा । मंगलाचरण की रचना भी विचित्र ढंग से की । मंगलाचरण की विचित्रता की स्पष्टता तत्रैव (पृ.नं.-६) पर है। धीरे-धीरे ङ, छ - आदि वर्गों से स्तुतिनिर्माण होता रहा । प्रभु के प्रभाव से सभी वर्गों Dark हो गए।
अंत में 'कु' एवं 'गो' से भी (एकस्वर तथा एकव्यंजनमय) स्तुति का निर्माण हुआ।
हस्व स्वर से अनन्तर 'छ' का द्वित्व आदि (च्छ) होने के कारण ‘छ' की स्तुति तथा सर्वत्र दीर्घ स्वर होने के कारण 'गो' की स्तुति 'विद्युन्माला' छन्द में है । अन्य स्तुति ‘अनुष्टुभ् छन्द में है ।
पूर्वोक्त कारण से प्रस्तावनादि का हिन्दी में आलेखन किया । रचना में क्षति हुई हो तो त्रिविध क्षमापना । बस...प्रभुभक्ति का ऐसा मौका बार-बार मिलता रहे ।
સુન રાખસુંદર વિ. श्रावणी पूर्णिमा, वि.सं.२०६६ २४-८-१० , गुरुवार
सत्यपुरतीर्थ