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________________ १०] गौतमचरिख। ॥६०॥ मरनेकेबाद उनके जीव पांचवें स्वर्गमें जाकर स्त्रीलिंगछेदकर प्रभावशाली देव हुए तथा उत्पन्न होते ही आनंद और यौवनतासे सुशोभित होगये ॥६१॥ उन देवोंने उत्पन्न होते ही अपने अवधिज्ञानसे समझ लिया कि "हम लब्धिविधान व्रत पालन करनेसे ही यहां स्वर्ग में आकर उत्पन्न हुए हैं ॥३२॥ वे देव देवांगनाओं के साथ अनेक प्रकारके सुख भोगते थे, उनका शरीर पांच हाथ ऊंचा था, दश सागरकी उनकी आयु थी, विक्रिया ऋद्धिसे वे मुशोभित थे, उनके मध्यम पद्मलेश्या थी और तीसरे नरकतक अवधिज्ञान था । जिस प्रकार भ्रमर कमलोंपर लिपटा रहता है उसी प्रकार श्रीसर्वज्ञदेवके चरणकमलोंकी वे सदा सेवा किया करते थे और अनेक देव देवी उनके चरणकमलोंकी सेवा किया करते थे ॥६३-६६॥ भगवान् महावीरस्वामीके समवशरणमें कहा जारहा है कि हे राजा श्रेणिक ! इधर राजा महीचंद्रने संसारकी अनिसता समझकर श्री अंगभूषण मुनिराजके समीप जिनदीक्षा पंचमे दिवि संजाता महादेवाः स्फुरत्प्रभाः । संछित्वा रमणीलिंग सानंदयौवनान्विताः ॥६१॥ चिंतितं विबुधैरेवमवधिज्ञानलोचनैः । लब्धिविधानमाहात्म्याद्वयमत्र समागताः ॥६२॥ भुतेस्म सुरास्तत्र सुखं स्त्रीरूपसंभवम् । पंचहस्तोचसत्कायाः सदशसागरायुषः ॥६३॥ विक्रियाढिसमापन्नाः मध्यमपद्मलेश्यकाः । तृतीयनरकस्यांतावधिज्ञानसमाकुलाः॥६४॥ श्रीसर्वज्ञपदद्वंद्वसेवनैकमधुव्रताः । अनेकदेवदेवीभिः सेवितपदपंकजाः ॥६५॥ अथ जैनेश्वरीं दीक्षां महीचंद्रो नृपो दधौ । अंगभूषण सांनिध्ये ज्ञातसंसारसंस्थितिः ॥६६॥ महातपः करोतिस्म
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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