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________________ [८७ तीसरा अधिकार। करनेवाले हैं परन्तु जिन्होंने स्थूल हिंसाका साग करदिया है उन्हें कुपात्र कहते हैं तथा जिन्होंने न तो कोई चारित्र धारण किया है और न कोई व्रत धारण किया है ऐसे हिंसक मिथ्याष्टी जीव अपात्र कहलाते हैं ॥४४॥ जिसप्रकार अयोग्य क्षेत्रमें बोये हुए बीजले थोड़ा और बुरा फल मिलता है उसीप्रकार कुपात्रको दिये हुए दानसे भी कुभोगसूमिकी प्राप्ति होती है ॥४५॥ जिस प्रकार आक और नीमके पेड़में डाला हुआ पानी कड़वा हो जाता है तथा सांपके मुहमें पहुंचा हुआ दूध विष हो जाता है उसी प्रकार अपात्रको दिया हुआ दान भी व्यर्थ ही जाता है अथवा विपरीत फलको ही फलता है ॥ ४६॥ अर्जिकाओंके लिये भक्तिपूर्वक शुद्ध सिद्धांत पुरतकें देनी चाहिये, उनके मनोहर वेष्ठन देने चाहिये, वस्त्र देने चाहिये और पीछी कमंडलु देना चाहिये ॥४७॥ श्रावक श्राविकाओंको बहुतसे आभरण, बहुमूल्य वस्त्र और बहुतसे नारियल देने चाहिये ॥४८॥ जो स्त्री पुरुष दुर्बल हैं, हीन हैं, दीन हैं, वा किसी दुःखसे दुखी हैं उन्हें दयापूर्वक भोजन वृत्तिकाः । कुपात्रमित्यपात्रं तु हिंसका अनिवृत्तिकाः॥४४॥ असत्क्षेत्रे यथा बीज क्षिप्तं अल्पफलं भवेत् । कुपात्रे च यथा दत्तं दानं कुभोगभूमिभाक्॥४५॥ अर्कनिंबद्रुमे क्षिप्त पयः कटुक्तां व्रजेत् । दुग्धं विषं भुज गास्येऽपात्रे दान तथा मतम् ॥४६॥ भक्त्या देयार्यिकाभ्योपि शुद्धसिद्धांतपुस्तिका । आच्छादनानि कांतानि वस्त्रं पिच्छीकमंडलुः॥४७॥ श्रावक श्राविकाभ्योपि प्रभूताभरणानि वै । बहुमूल्यानि वस्त्राणि नालिकेराणि भूरिशः ॥ ४८ ॥ दुर्बला हीनदीनाश्च ये हि दुःखेन
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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