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________________ तासर तीसरा अधिकार। [८५ देनेवाला मनोहर शांति विधान करना चाहिये ॥३२॥ उसके लिये चावलोंके एकसौ आठ कमल बनाने चाहिये (चौकीपर वस्त्र बिछाकर उसपर चांवलोंके कमल बनाने चाहिये) और उनके ऊपर मुंदर दीप और फल रखने चाहिये ॥३३ उसी श्रीवर्द्धमानस्वामीके जिनालयमें सुगंधित जलसे भरे हुए दैदीप्यमान सुवर्णके पांच कलश देने चाहिये ॥३४॥ क्षुधारोगको दूर करनेके लिये सोनेके पात्रोंमें रक्खे हुए पांच प्रकारके नैवेद्यसे उन कमलोंकी पूजा करनी चाहिये ॥३६॥ जिसकी मुगंधिसे बहुतसे भ्रमरोंके समूह इकट्ठे होगये हैं ऐसे केसर चंदन आदि सुगंधित द्रव्य भगवान वर्द्धमानस्वामीके उस जिनालयमें समर्पण करने चाहिये ॥३६॥ भगवान अरहंतदेवकी प्रतिमा विराजमान करनेके लिये सुवर्णका बना हुआ मनोहर सिंहासन देना चाहिये जो कि भगवान अरहंत देवके चरणकमलोंके नखोंकी कांतिसे दैदीप्यमान होता रहे ॥३७॥ एक भामंडल देना चाहिये जो अपनी कांतिसे सूर्यमंडलको भी जीतता मनोवाक्कायसंशुबैभक्तितो विधिना सह ॥३२॥ तंदुलानां सुपद्मानि शतान्यष्टोत्तराणि वै । तेषामुपरि धर्त्तव्यं फलदीपप्रभांतिकम् ॥३३॥ कनत्कनकसंभूता दीयंते पंच कुंभकाः । मंदिरे वर्द्धमानस्य सुगंधिजलसंभृताः ॥३४॥ पंचविधैः सुनैवेद्यैः सुवर्णभाजनस्थितैः । तानि पद्मानि पूज्यानि क्षुद्रोगविनिवृत्तये ॥३५॥ निजसुरभिसंहूतमधुकरसमुच्चयम् । प्रदेयं भगवद्गहे काश्मीरचंदनादिकम् ॥ ३६ ॥ सर्वज्ञस्नानपीठानि सुवर्णनानि वै ध्रुवम् । निनां हिनखरयोतिस्तोममनोहराणि च ॥३७॥ भामंडलं निनकांत्या नितमार्तडमंडलम् । प्रभूत
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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