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________________ ६०] गौतमचरित्र। नष्ट होजाती है ॥ १९६ ॥ वे योगिनियां सदा प्रमाद उत्पन्न करनेवाली मद्य पीती थीं और शरीरको पुष्ट करनेवाला मांस खाती थीं ॥१९७॥ वे प्रतिदिन शहत खाती थीं और अनेक जीवोंसे भरे हुए तथा महापाप उत्पन्न करनेवाले पांचों उदंबर भक्षण करती थीं ॥ १९८ ॥ वे तीनों स्त्रियां कामसेवनकी इच्छासे प्रसन्नचित्त होकर उत्तम वा जघन्य जैसा मिला उसी मनुष्यका सेवन करती थीं ॥ १९९ ॥ वे योगिनियां लोगोंके सामने ही रागसे भरे हुए और योगी लोगोंको भी काम उत्पन्न करनेवाले गीत सदा गाया करती थीं ॥२०॥ वे लोगोंको सदा यही विचित्र बात कहा करती थीं कि योग धारण किये हम लोगोंको सौ वर्ष गीत गये हैं ॥२०१॥ __अथानंतर किसी एक दिन धर्माचार्य नामके मुनि आहारके लिये पधारे । वे मुनि मौन धारण करने में पर्वतके समान निश्चल थे, पांचों इंद्रियोंको वश करनेवाले थे, मनरूपी क्षुधार्तानां लज्जा नश्यति निश्चितम् ॥१९६॥ प्रमादजननं मद्य पिबंति ता निरंतरम् । पुष्टकर्तृणि मांसानि खादयंति पुनः पुनः ॥ १९७॥ प्रत्यहं मधु भक्षति सहोदुंबरपंचकैः । जीवसंदोहसद्गुहं भूरिकिल्विषकारणम् ॥ १९८ ॥ उत्कृष्टं वा जघन्यं वा सेवंते मानुषं सदा । मदनबांच्छया कांता हर्षिताननलोचनाः ॥ १९९ ॥ गीतं गायंति कामिन्यो लोकानामग्रतोऽनिशम् । सरागं योगिनां चापि कामोत्पादनकारणम् ॥२००॥ लोकेभ्य इति जल्पंति नियतमद्भुतावहम् । अस्माकं योगयुक्तानां गतं वर्षशतप्रमम्॥२०१॥ अथ मौनाचलारूढं कृतपंचाक्षनिग्रहम् । वशीकृतमनोभूपं शरीरेऽपि गतस्टहम् ॥२०२॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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