SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० ] गौतमचरित्र वह रानी इस प्रकार चिंता करने लगी परन्तु वह अपने मनोरथोंको पूर्ण न कर सकी इसलिये उसने कपट करनेमें असन्त चतुर ऐसी अपनी दासियोंसे कहा ॥१४२॥ कि हे दासियो ! इच्छानुसार घूमना फिरना मनुष्यभवको सफल करनेवाला है और काम भोगादिको देनेवाला है इसलिये हम सबको यहांसे निकल कर इच्छानुसार घूमना चाहिये ॥१४३॥ इसके उत्तरमें वे दासियां कहने लगी कि आपने यह विचार बहुत अच्छा किया। संसारमें मनुष्यजन्मका फल ही यही बतलाया है ॥१४४॥ तदनन्तर कामवाणसे पीड़ित, कामसे अन्धी, अत्यन्त विह्वल, दुष्ट हृदयवाली, अपने कुलाचारसे रहित और दुर्बुद्धिको धारण करनेवाली वह रानी अपने पहलेके पापकर्मके उदयसे उन दोनों दासियोंके साथ घरसे निकलने का उपाय करने लगी ॥१४५-१४६।। झूठ बोलना, दुर्बुद्धि होना, कुटिल हृदय होना, छल कपट करना और मूर्ख होना ये स्त्रियों के स्वाभाविक गुण होते हैं ॥१४७॥ नैव लज्जा मे किं करिष्यति ॥१४ १॥ इति चिंता समाप्यासावसंपूर्णमनोरथा । अकथय द्रुतं दास्यौ भूरिकापन्यपंडिते॥१४२॥ स्वेच्छागमनकं चेट्यो करिप्यामो वयं द्रुतम् । मानुष्यभवप्सहेतु कामभोगा. दिदायकम् ॥ १४३ ॥ तदा जगदतुस्ते तां सखीति भवता वरम् । विचारितं नरत्वस्य फलमेतत्प्रकीर्तितम् ॥१४४॥ सोपायं साधयामाप्त निर्गमनस्य सत्वरम् । दासीद्वयसमायुक्ता स्वकुलाचारवनिता।।१४५॥ पीडिता कामबाणेन मारांधा चातिविह्वला । पूर्वपापविशकेन दुर्मतिदुष्टमानसा ॥१४६॥ असत्यं दुर्मतिश्चैव कुटिलहृदयं तथा । माया
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy