SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८] गौतमचरित्र हुआ। उसके उदयसे कुमुदिनी प्रफुल्लित होगई और संयोगिनी स्त्रियां. सुखी होगई ॥१३१॥ राजा राजमहलमें आकर फिर उस रानीके साथ आसक्त हो गया सो ठीक ही है स्त्रियां चित्तको मोहित करनेवाली होती ही हैं, यदि वे बहुत ही रूपवती हों तो फिर क्या पूछना है ॥१३२॥ इस प्रकार बहुतसा समय बीत जानेपर भी गजाको मालूम नहीं हुआ। सो ठीक ही है क्योंकि सुखमें एक महीना भी एक दिनके समान वीत जाता है और दुःखमें एक दिन भी एक महीनेके बराबर बीतता है ॥ १३३ ॥ किसी एक दिन वह विशालाक्षी रानी प्रसन्नचित्त होकर चामरी और रंगिका नामकी दो दासियोंके साथ राजमहलके झरोखोंमें खड़ी थी। उस समय किसी नाटकको देखकर उसका मन चंचल हो गया था। वह नाटक आनंद उत्पन्न करनेवाला था, मनोहर था, रससे भरपूर था, अनेक प्रकारके पात्रोंसे सुशोभित था, भेरी, मृदंग, ताल, वीणा, वंशी, डमरू, झांझ आदि अनेक बाजे उसमें बज रहे थे, स्त्रीपुरुषोंसे वह भर रहा था, ताल और लयोंसे वह सुंदर था, स्त्रीभेषको संयोगिनीसुखाकरः ॥१३१॥ मंदिरमेत्यभूपोऽभूत्तदासक्तमानसः । स्त्रियो हि चित्तमोहिन्यः सर्वा रूपयुताः किमु ॥१३२॥ गतं कालं विवेदासौ न विश्वलोचनः सुखे । मासो हि दिनतुल्यः स्यादःखे माससमं दिनम् ॥१३३॥ अथैकदा विशालाक्षी सौधगवाक्षके स्थिता । चामरी रंगिका दासी युता संहृष्टमानसा ॥१३४॥ तदा नाटकमालोक्य सा नाता चलमानसा । प्रमोदकारणं कांतं बहुरूपं रसाकुलम् ॥१३५॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy