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________________ दूसरा अधिकार । [ ४५ - कर रही थी, पुष्पों के हारसे वह सुशोभित थी और मनुष्योंके चित्तको मोहित करनेवाली थी । उसके नृसके साथ भ्रमरोंके झंकार ही उत्तम गीत थे, कोयलोंकी ध्वनि ही मृदंग थे, तोतोंकी आवाज ही वीणा थी और कीडोंके द्वारा खाये हुए (छिद्र सहित) वांसोंकी आवाज ही तालका काम देरही थी । इसप्रकार वह बन मानों राजाका सत्कार ही कर रहा था ।११३११५ ॥ वहां पर राजाने एक आमके पेड़पर स्त्री पुरुष रूप दो कोयलों को देखा । वे दोनों ही परस्परके प्रेमके समुदाय से एक दूसरेके मुखमें आमकी कलिका देरहे थे ॥ ११६ ॥ संभोग सुख देनेवाला जिनका पति विदेश गया है ऐसी कौनसी स्त्रियां इन कोयलोंकी स्त्रियोंके बचन सहन कर सकती हैं ? भावार्थ को नहीं ॥। ११७ ।। इस प्रकार घूमते फिरते हुए राजाने कहीं तो स्त्रियोंको मोहित करनेवाले, आनंद देनेवाले और अत्यन्त मनोहर ऐसे सारस पक्षियोंके शब्द सुने ॥ ११८ ॥ कहीं पर मालती के मनोहर फूल देखे जिनपर सुगंपुष्पसमूहकोत्तसां पत्रकेशां फलस्तनीम् । राजहंसादिसद्गीता बनलास्यधरां स्फुटम् ॥ ११४ ॥ पुष्पहारसमाक्रांतां मानवचित्तमोहिनीम् । यत्र नृपागमे वायुर्नर्तयति लतावधूम् ॥ ११५ ॥ (त्रिभिः कुलकम् ) । सहकारे ददर्शायं तत्र कोकिलयुग्मकम् । अन्योन्यप्रेमसंदो हैर्दत्तमुखाम्रसत्फलम् ॥ ११६॥ कांतेह पिककांतानां वाचं सोढुं हि का क्षमा । विदेशे भर्तरि प्राप्ते संभोगसुखदायिके ॥ ११७ ॥ क्वचिच्छुश्राव संरावान् सारसपक्षसंभवान् । प्रमोददायकान् कांता प्रमदामोहकारिणः ॥११८॥ क्वचिच्च मालतीपुष्पं लुलोकेह मनोहरं । सुगंध्याकृष्टभृङ्गा
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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