SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतमचरित्र। छठे नरकतक है; नौ अनुदिशके देवोंका अवधिज्ञान सातवें नरकतक है और पांचों अनुत्तर विमानोंके देवोंका अवधिज्ञान लोकनाड़ी तक है। इन सब देवोंका अवधिज्ञान ऊपरकी ओर अपने अपने विमानके शिखरतक है ॥२३०-२३२॥ भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी और पहले दो स्वर्गोके देवोंके मनुष्योंके समान शरीरसे भोग होता है, तीसरे चौथे स्वर्गके देव अपनी अपनी देवियोंका स्पर्श करने मात्रसे ही तृप्त हो जाते हैं, पांचवेंसे आठवें स्वर्गके देव अपनी अपनी देवियोंका रूप देखकर ही तृप्त होजाते हैं, नौवेसे लेकर बारहवें स्वर्गतकके देव अपनी देवियों के शब्द सुनकर ही तृप्त होजाते हैं और तेरहवेंसे लेकर सोलहवें स्वर्गतकके देव अपने अपने मनमें अपनी अपनी देवियोंका संकल्प करने मात्रसे ही तृप्त हो जाते हैं । सोलहवें स्वर्गसे ऊपर ग्रैवेयक, अनुदिश, अनुत्तरविमानवासी देव ब्रह्मचारी हैं, उनके काम बाधा नहीं है इसलिये वे सबसे अधिक सुखी हैं ऐसा आगमके स्वामियोंने कहा है ॥२३३-२३४ ॥ सौधर्म और ईशान स्वर्गमें ही देवियोंके उत्पन्न होनेके उपपाद स्थान हैं। इन देवियोंके जनांतं संपंचम्यंतं चतुः परे । नवग्रैवेयकस्थानामाषष्ठया विषयोऽवधेः ॥२३१॥ नवानुदिशदेवानामासप्तम्याश्च पंचसु । लोकनाडीपु सर्वेषां स्वविमानांतमूईकः ॥२३२॥ देवानामाद्ययोः प्रोक्तं कायभोगं मनुष्यवत । स्पर्शसुख परे द्वंद्वे रूपालोकं चतुषु च ॥२३३॥ शब्दश्चतुष्टये कल्पे मनोनातं चतुः परे । सब्रह्मचारिणः शेषाः मता आगमकोविदः ॥ २३४ ॥ सौव$शानयोः कल्पे योषितामुपपादकः । शुद्धदेवी
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy