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________________ पांचवां मधिकार। [१८५ अंतमें वीस वर्षकी रह जायगी ॥१८६॥ दुःषमदुःषम नामके छठे कालमें शरीरकी ऊँचाई एक हाथकी होगी और आयु बारह वर्षकी होगी ऐसा श्रीजिनेन्द्रदेवका कथन है ॥१८७॥ उस समयके मनुष्य सांपकी वृत्ति धारण कर महापाप उत्पन्न करते रहेंगे। न उनके पास घर होगा, न धन होगा, न कोई अन्य पदार्थ होंगे । करुणा वा दया आदि व्रतसे वे सर्वथा रहित होंगे, वे किसी प्रकारका आचरण पालन नहीं करेंगे और न उनमें विनय गुण ही होगा। वे बड़े क्रोधी होंगे और जिसप्रकार जंगलों में जंगली जानवर रहते हैं उसीप्रकार वे पापी गुफाओंमें रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करेंगे ॥१८८-१८९।। माता, पिता, भाई, बहिन आदि सम्बन्धके ज्ञानसे वे सर्वथा रहित होंगे, उनका हृदय प्रबल मोहसे सदा पीड़ित रहेगा और वे पशुके समान ही रहेंगे ॥१९०॥ धर्म, अर्थ, काम इन पुरुषार्थीको सिद्ध करनेवाले कारणोंसे वे सर्वथा रहित होंगे, पापकार्योंमें सदा लीन होंगे, क्रूर होंगे और वनस्पति तथा फल आदि खाकर ही जीवननिर्वाह वर्षमात्रकम् ॥ १८६ ॥ दुःषमदुःषमे नृणां उत्सेधो हस्तमात्रकः । द्वादशाब्दमितं चायुर्मिनेन्द्रेण प्रकीर्तितम् ॥१८॥ नरा भुजंगवृत्या ते गमयिष्यंत्यनेहसम् । मंदिरद्रव्यसंपत्तिकारुण्यादिव्रतच्युताः ॥१८८॥ अक्रियाः क्रोधसंयुक्ताः विनयादिगुणोज्झिताः । गुहावसतयः पापाः कांतारप्राणिनो यथा ॥१८९॥ मातृपितृस्वसृभ्रातृसंबंधज्ञानसंच्युताः । पशव इव भूयिष्ठमोहपीडितमानसाः ॥ १९० ॥ धर्मार्थकामसंदोहकारणैः परिवर्जिताः। पापकर्मरताः कूरा वनस्पति
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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