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________________ [१७५ पांचवां अधिकार। थे, श्रीपद्मप्रभ और श्रीवासुपूज्य लाल वर्णके थे, श्रीनेमिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ श्यामवर्णके थे तथा सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ हरित वर्णके थे और शेषके सोलह तीर्थंकरोंका शरीर तपाये हुए सोनेके समान था॥१२८-१२९॥बैल, हाथी, घोड़ा, बंदर, चकवा, कमल, स्वस्तिक (सांथिया) चंद्रमा, मगर, वृक्ष, गेंडा, भैंसा, शूकर, सेही, वज्र, हिरण, बकरा, मछली, घड़ा, कछवा, नीलकमल, शंख, सर्प और सिंह ये अनुक्रमसे चौवीसों तीर्थंकरोंके चिह्न हैं ॥ १३०-१३१ ॥ अयोध्या, अयोध्या, अयोध्या, अयोध्या, अयोध्या, कौशांबी, काशी, चंद्रपुर, काकंदी, भद्रपुर, सिंहपुर, चंपापुर, कंपिला, अयोध्या, रत्नपुर, हस्तिनापुर, हस्तिनापुर, हस्तिनापुर, मिथिला, राजगृह, मिथिला, सौरीपुर, वाणारसी, कुंडपुर ये अनुक्रमसे चौवीसों तीर्थंकरोंकी जन्मपुरियोंके नाम हैं ॥१.३२-१३४॥ श्रीवासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्द्धमान चंद्राभपुष्पदंतेशौ श्वेतवर्णौ प्रकीर्तितौ। पद्माभद्वादशौ रक्तौ श्यामलौ मेमिसुव्रतौ ॥ १२८ ॥ सुपार्श्वनाथपार्टी द्वौ हरिद्वर्णौ च षोडशः । तीर्थकरा बुधैर्जेयाः संतप्तकनकप्रभाः ॥१२९॥ वृषो हस्ती हयः कीशः कोकः सरोजस्वस्तिको । चंद्रमा मकरो वृक्षो गंड सैरिभशूकरौ ॥ १३० ॥ श्येनो वजं कुरंगो जो मत्स्वः कुम्भश्च कच्छपः । उत्पलं शंखनागेन्द्रौ सिंहो निनांकका इमे ॥ १३१ ॥ अयोध्यानगरी पंच जिनानामादितो मता । वत्सा काशीदुपुश्चेति काकंदी भद्रिका तथा ॥१३२॥ सिंहनादपुरं चंपा कंपिला च विनीतिकारी रत्नपुरं त्रयाणां वै हस्तिपुर्मिथिला तथा ॥१३३॥ कुशाग्रं मिथिला सौरी बाणारसी
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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