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________________ पांचवां अधिकार | [ १६६ बीज बहुतसे फलोंको फलता है उसीप्रकार पात्रोंको दिया हुआ थोड़ासा भी शुभदान अनेकगुणा होकर फल देता है ॥ ९७ ॥ जिसप्रकार ऊसर भूमिमें बोया हुआ बहुतसा बीज भी मूल समेत नष्ट होजाता है उसीप्रकार अपात्र को दिया हुआ दान भी व्यर्थ ही जाता है ।। ९८ ।। इस अवसर्पिणी - कालके अंत में जब पल्यका आठवां भाग बाकी था और जब कल्पवृक्ष नष्ट हो रहे थे उस समय कुलकर उत्पन्न हुए थे ||१९|| उनमें से पहलेका नाम प्रतिश्रुति था, दूसरेका नाम सन्मति, तीसरेका क्षेमंकर, चौथेका क्षेमंधर, पांचवेंका सीमंकर, छठेका सीमंधर, सातवेंका विमलवाहन, आठवेंका चक्षुष्मान्, नौका यशस्वान् दशवेंका अभिचंद्र, ग्यारहवेंका चंद्राभ बारहवेंका मरुदेव, तेरहवेंकां प्रसेनजित और चौदहवें कुलकरका नाम नाभिराय था । इनमेंसे सुख देनेवाले नाभिरायकी आयु एक करोड़ पूर्व थी और उन्होंने बालक उत्पन्न होते भोगभूमौ समुत्पत्य सुखं भुंक्त सुरेंद्रव ॥ ९६ ॥ सुक्षेत्रे क्षिप्तसद्बीजं यथा भूरितरं व्रजेत् । दत्तं पात्रे शुभं दानमल्पं बहुगुणं तथा ॥९७॥ ऊषरक्षेत्र निक्षिप्त बीजं भूरितरं यथा । नश्यति मूलतो दानमपात्रे निष्फलं तथा ॥ ९८ ॥ अथ तृतीयकालस्य शेषे पल्याष्टभागके । स्थिते कुलकरोत्पत्तिः क्षीयमाणे तरौ क्रमात ॥९९॥ प्रतिश्रुतिरभूदाद्य द्वितीयः सन्मतिस्तथा । क्षेमंकरस्तृतीयश्च क्षेमंधरः चतुर्थकः ॥१००॥ सीमंकरस्तथा ज्ञेयः सीमंधरस्तु षष्ठमः । विमलवाहनो नाम चक्षुष्मान्नष्टमो मतः ॥ १०१ ॥ यशस्वी नवमः प्रोक्तोऽभिचंद्रो दशमस्तथा । चंद्राभो मरुदेवश्च प्रसेनजितसंज्ञकः ॥ १०२ ॥ नाभिः
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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