________________
८]
गौतमचरित्र। गर्भ कल्याणकके समय जो रत्नोंकी वर्षा होती थी उस श्रेष्ठ धनको धारण करती हुई वहांकी पृथ्वी वास्तवमें वसुमती (धनको धारण करनेवाली) होगई थी ॥ ३२॥ उसी मगध देशमें अनेक प्रकारके पदार्थोसे भरपूर, मनुष्य और देवोंसे सुशोभित तथा स्वर्ग लोकके समान सुन्दर राजगृह नामका नगर शोभायमान है ॥ ३३ ॥ उस नगरके चारों ओर बहुत ही ऊँचा कोट शोभायमान था। वह कोट बहुत ही सुन्दर था, पक्षी और विद्याधरोंके मार्गको रोकता था और शत्रुओंके लिये भय उत्पन्न करता था ॥३४॥ उस कोटके चारों ओर मनोहर खाई थी जो कि निर्मल जलसे भरी हुई थी और प्रफुल्लित हुए कमलोंकी सुगन्धिके लोभसे अनेक भ्रमरोंको इकट्ठा करनेवाली थी॥३५॥ उस राजगृह नगरमें चंद्रमाके समान श्वेत वर्णके अनेक जिनालय शोभायमान थे और वे अपनी शिखरपर उड़नेवाली पताकाओंसे आकाशको छू रहे थे ॥ ३६॥ वहांके उत्तम मनुष्य जल, चंदन आदि आठों द्रव्योंसे भगवान श्री जिनेंद्रदेवके चरणकमलोंकी पूजा करते थे और उनके चरणदधाना श्रीजिनेन्द्राणां गर्भकल्याणसंभवम् ॥३२॥ अनेकवस्तुसंपूर्ण देवनरसमाश्रितम् । राजगृहं पुरं तत्र भातीव नाकपत्तनम् ॥३३॥ यन्नगरबहिर्भागे शालस्तुंगोऽस्ति सुन्दरः । संरुद्धखगनिर्याणो वैरिवर्गभयप्रदः ॥ ३४ ॥ प्राकारखातिका रम्या दधाति विमलं जलम् । पद्मसुगंधिलोभेन प्राप्तभ्रमरसंचयम् ॥ ३५ ॥ यत्र श्रीजिनचैत्यानि मांति चंद्रसितानि हि । शिखरस्थपताकाग्रप्रस्टशितांवराणि बै ॥३६॥ यत्र जलादिभिर्द्रव्यैरर्चा कुर्वति सन्नराः । जिनेन्द्रपादयुग्मस्य दर्शनाद