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________________ १४६] गौतमचरित्र। 'तियोंका नाश किया अर्थात् इनको नाश कर वे क्षपकश्रेणीमें आरूढ़ हुए ॥२४४॥ फिर वे मुनिराज अपने ध्यानके बलसे तिर्यंच आयु, नरकायु और देवायुको नाशकर शेष कर्मोको नाश करनेके लिये नौवें गुणस्थानमें जा विराजमान हुए ॥२४५॥ वहांपर उन्होंने स्थावर नामकर्म, एकेंद्रिय जाति, द्वींद्रिय जाति, तेइंद्रिय जाति, चौइंद्रिय जाति, तिर्यंचगति, तिर्यंचगसानुपूर्वी, नरकगति, नरकगसानुपूर्वी, साधारण आतप, उद्योत, निद्रानिद्रा, प्रचलामचला, स्त्यानगृद्धि और सूक्ष्म नामकर्म ये सोलह प्रकृतियां नौवें गुणस्थानके पहले अंशमें नष्ट की। फिर अप्रत्याख्यानावरण, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रसाख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ इन आठ कपायोंको दूसरे अंशमें नष्ट किया, फिर नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुल्लिंग, संज्वलन, क्रोध, मान, माया ये सब प्रकृतियां नष्ट की। उबलन, लोभप्रकृति, मुक्ष्मसापराय नामके दश गुणस्थानमें नष्ट की। निद्रा, प्रचला वारहवें गुणस्थानके उपांत्य सश्यों नष्ट की। दर्शनमोहनीयस्य त्रिःपळतीर्ननाश सः । चतुष्कं च कापायस्य करणत्रययोगतः ॥२४४॥ तिर्यग्नारकदेवायुर्नित्वा ध्यानबलान्मुनिः । नवमे च गुणस्थाने रुरोह क्षपणोद्यतः ॥२४५॥ स्थावरं च चतुर्जातीः सतियेग्नरकद्विकम् । साधारणातपोद्योतास्त्रिनिद्राः सूक्ष्मनामकम् ॥ २४६ ॥ षोडशप्रकृतीस्तत्र संहत्य प्रथमांशकद्वतीयांशे स चिक्षेप कषायमध्यमाष्टकम् ॥ २४७ ॥ क्रमाला। पंडत्वं स्त्रीत्वं हास्यादिषष्ठकम् । नृत्वं क्रोधं मुनेर्मानं मायां संज्यर तथा ॥२४॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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