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________________ १४४ ] गौतमचरित्र | भोजनका भी परियाग कर देना चाहिये क्योंकि रात्रिभोजन भी हिंसाका एक अंग, पापरूपी वेलकी जड़ है और स्वर्गादिक उत्तम गतियों का नाश करनेवाला है || २३५ ॥ रात्रिके समय जीवोंका संचार अधिक होता है इसलिये भोजन में ऐसे छोटे छोटे कीड़े मिल जाते हैं जो नेत्रोंसे देखे भी नहीं जा सकते इसलिये धर्मबुद्धिको धारण करनेवाला ऐसा कौन पुरुष है जो ऐसा निंद्य रात्रिभोजन करे ।। २३६ ॥ रात्रि - भोजन करनेके पापसे ये जीव सिंह, उल्लू, बिल्ली, कौआ, कुत्ते, गीध और मांसभक्षी भील आदि नीच योनियों में उत्पन्न होते हैं ||२३७|| जो शास्त्रोंको जाननेवाले विद्वान् पुरुष रात्रिमें चारों प्रकारके भोजनका त्याग कर देते हैं उन्हें एक महीने में पंद्रह दिन उपवास करनेका फल प्राप्त होता है ॥ २३८ ॥ इसप्रकार मुनि और श्रावकोंके भेदसे बतलाये हुए दोनों प्रकारके धर्मको जो रात दिन धारण करते हैं वे इंद्र, चक्रवर्ती आदि उत्तम पदोंका उपभोग कर अवश्य ही मोक्षके अनुपम सुखको प्राप्त करते हैं ||२३९|| इसप्रकार भगवान महावीर - सद्गतिक्षयकारकः || २३५|| लोचनविषयैर्हीनं कृमिकीटादिसंकुलम् । निशायामशनं केन क्रियते धर्मबुद्धिना ||२३६|| सिंहोल्काखुभुक्काकलोकशुन कगृध्रकाः । मांसाशिनः प्रजायंते पुलिंदा निशिभोजनात् ||२३७|| त्यजति चतुराहारं निशि ये शास्त्रकोविदाः । मासेन जायते तेषां फलं पक्षोपवासभाक् ॥ २३८ ॥ इति द्विविधधर्मं ये प्रकुर्वन्ते दिवानिशम् । ते चक्रयादिपदं भुक्त्वा मोक्षं यास्यति निश्चितम् ॥२३९॥ तदा श्रेणिकभूपाद्याः मानवा जगृहुर्व्रतम् । केचिच्च श्रावका
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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