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________________ चौथा अधिकार। [१३७ समस्त मनुष्योंमें चक्रवर्ती श्रेष्ठ है और समुद्रोंमें क्षीरसागर श्रेष्ठ है उसी प्रकार व्रतोंमें सम्यग्दर्शन श्रेष्ठ है ॥ १९८ ॥ जो मनुष्य सम्यग्दर्शनरूपी रत्नसे सुशोभित है वह चाहे भूखा ही हो (दरिद्री हो) तथापि उसे असन्त धनी समझना चाहिये। यदि सम्यग्दर्शनरूपी धनसे रहित राजा भी हो तथापि उसे निर्धन ही समझना चाहिये ॥ १९९ ॥ इस सम्यग्दर्शनके प्रभावसे मनुष्योंको राज्य-सम्पदा प्राप्त होती है, भोग उपभोगकी बहुतसी सामग्री प्राप्त होती है, उनके रोगादिक सब दुःख नष्ट हो जाते हैं, उनका हृदय सदा धर्ममें तल्लीन रहता है, सब लोग उनकी सेवा करते हैं, उनकी आयु पूर्ण होती है, आज्ञाकारी पुत्र होते हैं, हाथी, घोड़े, बैल आदि सब प्रकारकी सवारियां मिलती हैं, वे असंत धनी होते हैं, बड़े ही विद्वान् होते हैं, वे अपने तेजसे मूर्यको भी जीतते हैं, समस्त संसारमें उनकी कीर्ति फैल जाती है, वे अपने रूपसे कामदेवको भी लज्जित करते हैं, अनेक स्त्रियां उनकी सेवा करती हैं, इंद्र, चक्रवर्ती आदिके उत्तम पद उन्हें प्राप्त होते हैं, देवेषु चक्री यथाखिले जने । क्षीरांबुधिः समुद्रेषु सम्यक्त्वं च तथा व्रते ॥१९८॥ बुभुक्षितोऽस्ति वस्वाट्यः सम्यक्त्वरत्नसंयुतः। नृपोपि दुर्विधःप्रोक्तो दर्शनधनवर्जितः ॥१९९॥ राज्यसंपत्तिसंयुक्ताः प्रचुरभोगधारिणः । रोगक्लेशविनिर्मुक्ता धर्मसंसक्तमानसाः ॥ २० ॥ निखिलजनसंसेव्या दीर्घायुषः सुपुत्रिणः । दंतिवृषतुरंगाड्या धनवंतः सुकोविदाः ॥ २०१॥ तेजसा जितमार्तडा विष्टपव्याप्तकीर्तयः । रूपनिर्मितकंदर्पा कामिनीवृन्दसेविताः ॥२०२॥ इंद्रचक्रिपदारूढा
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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