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________________ १२४ ] गौतमचरित्र। मालाके रूपमें परिणत हो जाता है ॥१३२॥ जो मूर्ख मनुष्य असत्यभाषणसे ही सद्धर्मकी प्राप्ति चाहते हैं वे विना ही अंकुरोंके सब प्रकारके धान्य उत्पन्न होनेकी शोभाको चाहते हैं ॥ १३३ ।। बुद्धिमान पुरुषोंको हिंसा और झूठके समान चोरीका भी त्याग कर देना चाहिये क्योंकि चोरी करनेसे भी दूसरोंको सदा दुःख पहुंचता रहता है । यह चोरी पुण्यरूपी पर्वतको चूर करनेके लिये वज्रके समान है और आपत्तिरूपी लताओंको बढ़ानेवाली है ॥ १३४ ॥ चोरी करनेसे नरककी प्राप्ति होती है, वहांपर छेदन, तापन आदि अनेक प्रकारके दुःख प्राप्त होते हैं। वह नरक दुःखोंका गढा ही है और वहांके नारकी परस्पर एक दूसरेके साथ सदा शत्रुता रखते हैं ॥ १३५ ॥ चोरी करनेवालोंकी सब लोग निंदा करते हैं, राजा भी उन्हें प्राणदंडकी आज्ञा देता है तथा और भी अनेक प्रकारके दुःख उन्हें भोगने पड़ते हैं ॥ १३६ ॥ जो पुरुष चोरी नहीं करता है उसे अनंत सुख देनेवाली और जन्म-मरणको दूर करनेवाली मोक्षरूपी स्त्री मित्रताम् । सर्पोपि माल्यतां याति सत्यवचःप्रसादतः ॥ १३२ ॥ असत्यवाक्यतो मां येऽभिलषंति सदृषम् । समस्तसस्यसंपत्तिर्वालिशास्ते विनांकुरात् ॥ १३३ ॥ स्तेयं बुधैः प्रहर्तव्यं परपीडाकर सदा । सुकृतगिरिदंभोली व्यापलताप्रवर्द्धकम् ॥ १३४ ॥ लभते नरकं स्तेयाच्छेदनतापनप्रदम् । अनेकदुःखगाढ्यं वैरिसंवद्धमानसम् ॥१३१॥ जायते स्तेयतो लोके विश्वजनैः प्रणिंदिता । नरा नृपतिसंवध्या दुःखनिकरभाजकाः ॥१३६॥ अदत्तं यो न गृह्णाति सिद्धि
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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