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________________ * प्रथम सर्ग सुनकर मरुभूतिने कहा,-"यह बात नहीं हो सकती।" जब वरुणा उसे बार-बार समझाने लगी,तब इस बातकी जांच करनेके लिये एक दिन मरुभूतिने दूसरी जगह जानेका बहानाकर कमठसे बाहर जानेको आज्ञा मांगी और थोड़ी ही दूर जाकर पीछे लौट आया। साँझको थके-माँद भिखारीका रूप बनाये कमठके घर आया और पास ही कहीं रातभर रहनेकी आज्ञा मांगी। कमठने सोचा कि जिसके घरसे अतिथि निराश होकर चला जाता है, वह उसे अपना पाप देकर ग्रहीका पुण्य लेकर चला जाता है। यही सोचकर उसने अपने मकानके एक कोने में उसे सोनेके लिये जगह दे दी। वह भी नींदका बहाना किये पड़ रहा। रातको मरुभूतिने उन दोनोंको बदचलनो अपनी आँखों देख ली। सवेरे उठकर वहाँसे थोड़ी दूर जाकर वह फिर घर लौट आया और मनमें ही गुस्सा छिपाये रहा ; क्योंकि स्त्रोका पराभव पशुओंसे भी नहीं सहा जाता। ___ होनहारकी बात-मरुभूतिने इन दोनोंके बदचलनीकी बात राजा अरविन्दसे कह सुनायी। यह सुन तेजस्वी राजाको बड़ा क्रोध हुआ। धर्मात्मा जनोंके लिये सौम्य, अन्यायके रास्तेपर चलने वालेके लिये यम और याचकोंके लिये कुबेरके समान राजाने उसी समय कोतवालको बुलाकर हुक्म दिया कि उस दुष्ट कमठको दण्ड दो । यमदूतकी तरह कोतवाल उसी समय कमठके घर जा पहुँचा और उसे पकड़कर गधेपर बिठा, सूपका छत्र माथेपर लगा, पापके फल-स्वरूप बेलके फलोंकी माला गले में पहना, सारे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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