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[ ५ ] हमारा यह उद्योग प्रिय प्रतीत होगा।
वहांपर हम अपने परम पूजनीय वयोवृद्ध उपाध्यायजी हेमचन्द्रजी बावाजीके पूर्ण अनुगृहीत है, जिन्होंने इस ग्रन्थके सम्पादनमें बड़ी सहायता पहुंचायी हैं। आप अजीमगंजके निवासी हैं, किन्तु इधर कई वर्षोंसे कलकत्ते ही रहते हैं। संस्कृतके तो आप उच्च कोटीके प्रखर विद्वान् है ही, पर साथ ही यन्त्र-मन्त्र एवं वैद्यक शास्त्रके भी पूर्ण ज्ञाता हैं। यहांपर आपका निजी एक औषधालय भी है, जिसमें आप स्वयं रोगियोंकी चिकित्सा करते हैं। यह बड़े ही गौरवको बात है, कि आप जैसे योग्य विद्वान् इस समय यति समाजमें मौजूद हैं।
धर्म-प्रेमी साहित्यानुरागी श्रीयुत बाबू प्रणचन्दजी नाहरको भी हार्दिक धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय दे कर समय-समयपर उचित सम्मति देनेकी कृपा की है।
प्रस्तुत ग्रन्थके दो फार्म छपनेके बाद ही हम मलेरिया ज्वरसे बुरी तरह घिर गये। उपचार करनेपर भी लगातार डेढ़ महिने तक बना ही रहा। अतः इस ग्रन्थके प्रूफ संशोधनमें अनेक त्रुटियें रह गयी है; एवं कई जगह प्रेसके भूतोंकी असावधानीके कारण अशुद्धिये छूट गयी हैं। एतदर्थ पाठकोंसे क्षमायाचना पूर्वक निवेदन है कि वे उन अशुद्धियोंको सुधार कर पढ़ें। दीपावली
) आपकाता० ३१-१०-१९२६ २०१, हरिसन रोड, कलकत्ता। | काशीनाथ जैन ।