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________________ * पार्श्वनाथ चरित्र * हुए नगरके बाहरवाले उद्यानमें पधारे हैं।” यह सुन राजाने मन-ही-मन प्रसन्न हो उसे लाख रुपये इनाममें दिये। इसके बाद तुरत ही आनन्द और उत्साह-पूर्वक अन्तः पुरकी स्त्रियोंके साथ गुरु महाराजके चरणोंकी वन्दना करने गये। वहाँ पहुँचकर पांचों अभिगमके साथ तीन बार प्रदक्षिणा दे, माथा जमीनमें टेककर नेत्रानन्द दायक गुरुकी विशुद्ध भावसे विधि-पूर्वक वन्दना कर हाथ जोड़े सामने बैठ गये। नगर-निवासीगण भी सानातिशयसे देदीप्यमान और अनेक मुनियोंसे सेवित चरणकमलवाले मुनीश्वरको विनय-पूर्वक वन्दना कर यथा स्थान बैठ गये। इसके बाद राजर्षि नरवाहनने कल्याणकारी धर्मलाभरूपी आशीर्वाद देकर इस प्रकार धर्मदेशना प्रारम्भ की:___ “हे भव्य प्राणिओ ! जो मूढ प्राणी दुर्लभ मनुष्य-देह पाकर प्रमादके वशमें होकर यत्न-पूर्वक धर्मका आचरण नहीं करता, वह मानो बड़े कष्टसे मिली हुई चिन्तामणिको मूर्खताके कारण समुद्रमें फेंक देता है। कितने प्राणी तो प्रवालकी भाँति स्वयं धर्मके रंगमें रंगे हुए होते हैं, कितने हो चूर्णकणको तरह रङ्ग पाने योग्य होते हैं और कितने हो काश्मीरमें पैदा होनेवाली केसरकी तरह सुगन्धित और सब प्रकारसे आप रङ्गीन होते हुए दूसरोंको भी अपने रङ्गमें रंग देनेवाले होते हैं, इसलिये वे धन्यवादके पात्र हैं। मनुष्यत्व, आर्य-देश, उत्तम जाति, इन्द्रियपटुता और पूर्ण आयु-ये सब कर्म लाघवसे बड़े कष्टसे मिलते हैं। इनकी प्राप्ति होनेपर भी सुखकी इच्छा रखनेवाले भव्य जीवोंको
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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