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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र सुन कुमारने मन्त्रीको अपने कुल आदिका यथार्थ विवरण कह सुनाया। तुरतही मन्त्रीने जाकर राजाको कह सुनाया। सुनकर राजाको अत्यधिक प्रसन्नता हुई। तो भी उन्होंने अपनी दिलजमईके लिये अपना एक दूत पत्रके साथ श्रीवासनगरमें राजा नरवाहनके पास भेजा । दूतने वहाँ पहुँचकर राजाको पत्र दिया और जबानी भी सारा हाल कह सुनाया। उसकी बातें सुनकर नरवाहन राजाको तो मानों नया जीवन मिल गया। उन्होंने बड़ी प्रसन्नताके साथ कहा,-"अहा ! इस समय राजा जितशत्रु से बढ़कर मेरा कोई हितू नहीं है, जिन्होंने अतिदान करनेके लिये तिरस्कार पाये हुए मेरे लड़केको, जो इधर-उधर भटकता फिरता था, अपने पास रखा और पाला-पोसा । तुम जाकर अब मेरे लड़के को यहाँ भेज दो।" यह कह, तरह-तरहकी भेटोंके साथ राजाने अपने प्रधान पुरुषोंको भी उस दूतके साथ भेजा। उन लोगोंने वहाँ पहुँचकर राजा जितशत्रु से सारी बातें कह सुनायीं। सब सुनकर राजा जितशत्रु अपने मनमें विचार करने लगे,–“ओह ! अज्ञानके वशमें पड़कर मैं क्या कर बैठा ?" ___ इसके बाद राजाने अपनी पुत्रीको पास बुलवा, गोदमें बिठा, आँखोंमें आँसू भरे हुए कहा,-"प्यारी पुत्री! तू स्वामीके साथ चिरकाल जीतो रहे, यही मेरा आशीर्वाद है। मुझ पापीने जो कुछ अनुचित किया हो, वह क्षमा करना। तेरे सारे मनोरथ पूरे हों।" इसके पश्चात् उन्होंने कुमारको बुलाकर शर्माते हुए कहा,"हे सत्यवीर कुमार ! उस दुष्ट सजनकी बातोंमें आकर मैंने बड़ा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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