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* पार्श्वनाथ-चरित्र *
होनेपर भी मेरे निमित्त दस मनुष्योंका वध होने जा रहा है। विशेष दुःखकी बात तो यह है कि चण्डसेनको समझानेपर भो बह किसी तरह नहीं मानता । अब क्या किया जाय और किस प्रकार इन मनुष्यों के प्राण बचाये जायें।
इधर बन्धुदत्तने देखा कि मृत्युकाल समीप आ पहुंचा है, अतएव बारम्बार पंच परमेष्ठी महामन्त्रका उच्चारण करने लगा। कभी वह अपने अपराधोंके लिये मन-हो-मन पश्चाताप कर उनके लिये क्षमा प्रार्थना करता और कभी उच्चस्वरसे पार्श्वनाथ भगयानका नाम स्मरण करता। इसो समय भिल्लोंने उसपर खड्गप्रहार किया, किन्तु पार्श्वनाथके नाम स्मरणके प्रभावसे खसको जरा भी दुःख न हुआ। उसपर बरम्बार प्रहार किये गये किन्तु उसके शरीरपर इस प्रकार वे प्रहार बेकार हो जाते थे, मानो उसका शरीर पत्थरका बना हो । यही अवस्था बन्धुदत्तके मामा धनदत्तकी भी थी। यह हाल देखकर भिल्ल घबड़ा उठे। उन्होंने तुरन्त वण्डसेनके पास जाकर यह हाल निवेदन किया। वएडसेनने उन दोनोंको अपने पास लानेकी आज्ञा दो। भिल्लोंने पैसा ही किया। चण्डसेनके पासही प्रियदर्शना भी बैठी हुई थी। वह बन्धुदत्तको देखते ही प्रसन्न हो उठो। प्रियदर्शनाको देखकर बन्धुदत्तको भी आनन्द हुआ। दोनोंके नेत्रोंसे हर्षके कारण अश्रुधारा बह चलो। थोड़ी देरके बाद प्रियदर्शनाने चण्डसेनको बतलाया कि यही मेरे पतिदेव हैं । यह सुनते हो चण्डसेनने उठकर बन्धु . दत्तको गलेसे लगा लिया और उसे बड़े आदर सत्कार पूर्वक अपने