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________________ • पार्श्वनाथ चरित्र दिया। सबसे मैं तेरे पिताको अपने पिताके समान पूज्य दृष्टिले देखता हूं और इसीसे मैं तुझे वहिन मान रहा हूं। बोल, मैं तेरा पया हित कर सकता हूं ?" यह सुन प्रियदर्शनाने कहा, "हे बन्धु ! जिस समय आपके भादमियोंने हम लोगोंको लूटा, उस समय तो मेरे पति देव मेरे साथ ही थे, किन्तु अब धे न जाने कहां होंगे? यदि आप वास्तवमें मेरा हित करना चाहते हैं, तो उनकी खोज कर उन्हें यहां ले आइये।” प्रियदर्शनाकी यह प्रार्थना सुन, उसे वहीं छोड़, चण्डसेन स्वयं बन्धुदत्तकी खोजमें बाहर निकल पड़ा, 'किन्तु चारों ओर बहुत कुछ खोज करने पर भी उसका कहीं पता म लगा। अन्तमें वह हताश हो घर लौट आया । इसके बाद ससने अपने भादमियोंको दूर दूर तक खोज करनेको आशा रे रखाना किया, किन्तु कहीं भी पता न लगने पर कुछ दिनोंमें वे भी लौट आये । इस समय प्रियदर्शनाने एक पुत्रको जन्म दिया। कुछ दिनोंके बाद एक दिन चंडसेनने अपनी कुल देवोके सम्मुख मानता मानी किः-“हे माता! यदि एक मासमें प्रियदर्शनाका पति बन्धुदत्त मिल जायगा, तो मैं तुझे दस पुरुषोंकी बलि चढ़ाऊंगा।" इस बातको भी पचीस दिन बीत गये, किन्तु बन्धुदत्तका कहीं पता न मिला। फिर भी चण्डसेनने अपने भादमियोंको बलिदान के लिये दस पुरुष ले आनेको आज्ञा दे दी। .. इधर पत्नो वियोगसे संतप्त हो चारों ओर भ्रमण करता हुमा पायुदत्त हिंताल पर्वतके एक वनमें जा पहुंचा। वहां उसने एक बात बड़ा सप्तच्छद वृक्ष देखा। उस वृक्षको देख कर वह अपने
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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