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________________ ५२२ * पार्श्वनाथ चरित्र लाभ होता । यदि मिट्टीको छु लेता तो वह भी सोना हो जाता इस प्रकार विपुल सम्पत्ति उपार्जन करनेके बाद बन्धुदत्त अपने घर आनेके लिये रवाना हुआ; पर मार्गमें तूफान के कारण उसकी नौक टूट गयी और वह अपनी समस्त सम्पत्तिके साथ समुद्रमें जा पड़ा । किन्तु सौभाग्यवश एक काष्ट खण्ड उसके हाथ लग गया और वह उसके सहारे तैरता हुआ रत्नद्वीपमें किनारे आ लगा । वहांसे पैदल चलता और फलाहार करता हुआ वह रत्नादि पहुंचा। वहां रत्न ग्रहण करते हुए उसे एक जिन प्रासाद दिखायी दिया । उसमें जाकर उसने श्रीनेमिनाथके बिम्बको नमस्कार किया। इसके बाद उसी जगह चैत्यके बाहर, एक वृक्षके नीचे शुक्लध्यानमें निमग्न कई मुनि बैठे हुए थे, उन्हें वन्दन कर उसने अपना सारा हाल कह सुनाया । सुनकर उन मुनियोंमेंसे एक मुनि, जो बडे ही शान्त और ज्ञानी थे, उन्होंने उसे सान्त्वना दी एवं उसे उपदेश दे जिन धर्मपर दृढ़ किया । इसी समय चित्रांगद नामक एक विद्याधर मुनिको वन्दन करने आया । उसने बन्धुदत्तको साधर्मिक भाई जानकर अपने यहां निमन्त्रित किया और उसे अपने घर ले जाकर स्नान मज्जन और भक्ति पूर्वक भोजन कराया। भोजनादिसे निवृत्त होनेपर विद्याधर ने कहा, “प्रिय बन्धु ! आप मेरे सहधर्मो हैं और मेरी बात मानकर मेरे यहां पधारे हैं, अतएव इस अवसरकी स्मृतिमें मैं आपको कुछ देना चाहता हूं । कहिये तो आपको आकाशगामिनी विद्या दूं और कहिये तो किसी सुन्दरी कन्यासे आपका "
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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