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________________ .माठवां स.. मुनिकी यह बात सुन सागरदत्त आनन्दित हो अपने घर गया। दूसरे दिन वास्तवमें पार्श्वनाथ भगवानका वहां आगमन हुआ। यह समाचार सुनते ही राजा, नगरजन और सागरदत्त हर्षित हो चन्दन करनेके लिये गये। उस समय लाभ होनेकी संभावना देश भगवानने सागरदत्तको ही लक्ष्यकर धर्मोपदेश दिया। भगवामने अपने उपदेशमें देवतत्व, गुरुतत्व और धर्मतत्वको विस्तार पूर्वक व्याख्या की। उसे सुनकर सागरदत्तको वैराग्य आ गया। उसी समय वह भगवानके चरणोंमें गिर पड़ा। शुक्ल ध्यान और शुभ वासनाके कारण उसे वहीं जातिस्मरणशान हो आया। इसके बाद उसने यतिवेष धारण कर क्रमशः परम पद प्राप्त किया। इस प्रकार परोपकारी पार्श्वनाथ भगवानने उसे इस संसारसे तारकर पार लगाया। * चार मुनियोंकी कथा। + शुद्ध वंशोत्पन्न शिव, सुन्दर, सोम और जय नामक चार शिष्योंने चिरकालसे व्रत ले रखा था। अब वे बहुश्रुत भी हुए थे। उन्होंने भगवानको प्रणाम कर पूछा--"हमें इस जन्ममें सिद्धि प्राप्त होगी या नहीं ?" भगवानने बतलाया-"तुम लोग चरम शरोरी हो, इसलिये इसी जन्ममें सिद्ध होगे। भगवानका यह वचन सुन कर वे अपने मनमें कहने लगे, कि यदि हमें इसी जन्ममें सिद्ध होना है, तो वृथा कायाकष्ट क्यों करना चाहि
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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