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________________ ५०८ * पार्श्वनाथ-चरित्र नृसिंह और वनराजको राजधानीकी ओर वापस भेज दिया और आप कोई बहाना कर वहीं रह गया। वनराजके कारण राजाको खाना पीना और सोना तक कठिन हो गया। वह रात दिन उसीके मारनेकी तरकीब सोचा करता था। जब नृसिंह और वनराज दोनों जन क्षतिप्रतिष्ठित नगरमें पहुंच गये, तब राजाने एक दिन सांढनी सवारको पत्र देकर नृसिंहके पास भेजा। उस पत्रमें उसने लिखा था कि यह पत्र मिलतेही शीघ्रही वनराजको विष दे देना। सांढनो सवार यह पत्र लेकर क्षतिप्रतिष्ठित नगरके लिये रवाना हुआ। रात पड़नेपर वह मार्गके उसी जंगलमें टिक रहा, जिसमें सुन्दर यक्षका मन्दिर था। यक्षको अवधिज्ञानसे मालूम हो गया कि वनराजको मारनेके लिये ही यह सब कार्रवाई हो रही है। फलतः उसने देव शक्तिसे उस पत्रके "विष" शब्दको “विषा" बना दिया। विषा राजाकी राजकुमारीका नाम था। सांढनी सवार दूसरे दिन नगरमें पहुंचा और नृसिंहको वह पत्र दिया। नृसिंहने वह पत्र पढ़कर उसका यही अर्थ निकाला कि राजाने वनराजके साथ शीघ्र ही विषाका ब्याह कर देनेकी आज्ञा दी है । देखते ही देखते यह शुभ संवाद समूचे नगरमें फैल गया। राजकुमारने बड़ी तेजी के साथ ब्याहकी तैयारी करायी और शुभ मुहूर्त देखकर बड़े समारोहके साथ वनराजसे विषाका ब्याह कर दिया। वनराज अब राजपरिवारके मनुष्योंमें परिगणित होने लगा और राजसी ठाठसे नवविवाहिता वधूके साथ आनन्द करने लगा।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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