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________________ * सप्तम सर्ग * ५०३ निष्ठ, विशाल होनेपर विद्वान किंवा भोगी और छोटा होनेपर राजाका मस्तक छत्राकार होता है । अधमका घड़ेकी तरह होता है और मुलायम, काले, चिकने और पतले है और सफेद, भूरे, मोटे और रुखे । मनुष्य दुःखी होता है । दरिद्रीका लम्बा होता है पापीका बैठा हुआ होता है। बाल हों तो पुरुष राजा होता हो तो वह दुःखी होता है । इस प्रकार सामुद्रिक शास्त्रका वर्णन कर राज पुरोहितने कहा, – “हे राजन् ! जितने शुभ और राज्य प्राप्ति सूचक चिन्ह माने गये हैं, वे सभी इस बालकमें दिखायी देते हैं । इसलिये मैं कहता हूं कि यह अवश्य ही आपके राजका अधिकारी होगा ।” पुरोहितकी यह बात सुनकर राजा अमावस्याके चन्द्रकी भांति क्षीण हो गया । उसने उसी समय सभा विसर्जित कर दी और महल में पहुंच कर तुरत वण्डको बुलवाया और उससे पूछा कि, " हे चण्ड ! सच कहना, तूने उस बालकका वध किया था या नहीं ?” चण्ड अब झूठ न बोल सका । उसने गिड़गिड़ा कर क्षमाप्रार्थना करते हुए सच बात कह दी। राजा अब पुनः उस बालकको मरवानेके लिये तैयार हुआ । इस बार उसने यह काम भीमसेन नामक सेवकको सौंपा। इसलिये भीमसेन वन · राजको खेलते समय फुसला ले गया। जब वह उसका वध करनेके लिये घोड़े पर सवार हो नगरके बाहर चला, तब मार्ग में वनराजने उससे पूछा, “पिताजी ! आप मुझे कहां लिये जा रहे हैं ?" घनराजको यह मीठो बोली सुनकर भीमसेनका मन पानी
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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