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* पाश्वनाथ-चरित्र नमस्कार करनेके लिये आते थे। उसी मन्दिरके पास एक बड़ा सा आम्रवृक्ष था। जिसपर एक प्रेमी शुकयुगल रहता था । एक बार शुकने शुकोसे कहा, "हे प्राणनाथ ! मुझे दोहद उत्पन्न हुआ है, इसलिये आप शालिक्षेत्रसे एक शालिगुच्छा ला दीजिये। शुकने कहा, "हे प्रिये! यह श्रीकान्तक राजाका खेत है। इस खेतसे एक दाना भी लेना प्राणको खतरेमें डालना है।" यह सुन कर शुकीने कहा, "हे स्वामिन् ! संसारमें आपके समान शायद ही कायर कोई दूसरा होगा। दोहद पूरा न होनेके कारण मैं मर रही हूं और आप प्राणके लोभसे मेरी उपेक्षा कर रहे हैं। शुकीकी यह बात सुन शुक लजित हो उठा और अपने प्राणको हथेली में रखकर शालिक्षेत्रसे एक गुच्छा ले आया । इस प्रकार उस दिन शुकोका दोहद पूर्ण हुआ। इसके बाद रक्षकोंका भय छोड़कर वह रोज शुक्रीके आदेशानुसार क्षेत्रसे शालिका गुच्छा लाकर शुकीका दोहद पूर्ण करने लगा। ___एक दिन श्रीकान्त राजा शालिक्षेत्र देखने आया। उसने वहां जब चारों ओर घूमकर देखा तो एक ओर खेतको पक्षियों द्वारा खाया हुआ पाया। यह देखकर उसने अपने अनुचरोंसे पूछा, "इस ओर तो सारा खेत चौपट हो गया है। तुम लोगोंने इसको रक्षा क्यों न की ?" अनुचरोंने कहा,-"स्वामिन् ! हमारी रक्षामें कोई कसर नहीं है, किन्तु क्या करें, एक शुक रोज चोरकी तरह आता है और बालियां लेकर उड़ जाता है। उसोने खेतकी यह अवस्था की है।" यह सुन राजाने कहा,-"उसे जालमें फंसाकर