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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र * ___ एक दिन दोनों राजकुमार झरोखेमें बैठे हुए नगरकी शोभा देख रहे थे। इतने में एक मुनि शुद्ध भिक्षाके लिये भ्रमण करते हुए उधरसे आ निकले। उनका मन अव्यग्र और गात्र मैलसे मलीन हो रहे थे, किन्तु चारित्रका पालन करनेमें वे किसी तरह के कमी न रखते थे। उन्हें देखकर दोनों भाई सोचने लगे, कि इन्हें शायद कहीं देखा है। यह सोचते-सोचते उन्हें शुभ ध्यानके योगसे जातिस्मरणशान उत्पन्न हुआ। फलतः वे दोनों जन मुनिराजको वन्दन करने गये। मुनीन्द्रने भी अवधिज्ञानसे उन दोनोंके पूर्व जन्मका वृत्तान्त जान कर कहा,—“हे राजन् ! तूने पूर्वजन्ममें साधुओंकी सेवा कर दानरूपो कल्पवृक्ष बोया था। उसीका यह राज्य प्राप्ति रूप पुष्प प्राप्त हुआ है, मोक्षगमन रूपी फल अभी मिलना बाकी है। वयरसेनने पांच कौड़ियोंके पुष्प लाकर जिनपूजा की थी। उसी पुण्यके प्रभावसे इसे दिव्य और विपुल भोगकी प्राप्ति हुई है, किन्तु यह तो उस पुण्यवृक्षका पुष्प है। फलके रूपमें तो अनन्त सुख रूपो सिद्धिकी प्राप्ति होगी।" मुनिकी यह बातें सुनकर दोनोंने पूछा,"हे विभो ! हमें सिद्धि कब प्राप्ति होगो ?” मुनिने कहा, "पहले तुम्हें देवयोनि और मनुष्य योनिमें क्रमशः पांच जन्म लेकर सुख भोग करना होगा। इसके बाद पूर्व विदेहमें तुम्हारा छठां जन्म होगा। वहां साम्राज्य सुख भोगनेके बाद तुम लोग चारित्र ग्रहण करोगे और निर्मल तप कर अन्तमें दोनों जन सिद्धि पद प्राप्त करोगे।" मुनिकी यह बातें सुनकर राजकुमार तथा समस्त श्रोताओं
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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