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________________ ४६६ * पार्श्वनाथ-चरित्र * वहां मयूर और मेंढकोका शब्द सुनायो दे रहा था और केतकी तथा जाई प्रभृति पुष्पोंकी सुगन्ध फैल रही थी। आधे वर्ग चेमें शरद् ऋतुकी बहार होनेके कारण सरोवरका जल निर्मल हो रहा था और कास कुसुम तथा सप्तच्छद वृक्ष हंसोंके निवाससे सुशोभित हो रहे थे। वहां वह कोड़ा कर उत्तर दिशाके बगीचेमें गया। वहां भी दो ऋतुएं दिखायी देती थीं। आधे बगोचेमें शिशिर ऋतु थी,इसलिये वहां खिलो हुई शतपत्रिका पर भ्रमर गुञ्जार कर रहे थे। आधे बगीचे में हेमन्त कालीन पुष्प विकसित हो रहे थे। इस प्रकार तीन दिशाके बगीचोंमें विवरण करता हुआ वयरसेन दिन बिताने लगा। एक दिन उसने सोचा, कि तीन दिशाओंके बगीचे तो देख लिये, पर चौथी दिशाके बगीचेमें क्या है यह मालूम न हो सका। इस लिये एक बार वहां भी चलना चाहिये। यह सोच कर वह वहां गया। वहां घूमते हुए उसे एक नया पुष्प वृक्ष दिखायी दिया। इससे उसने कौतुकवश उसका एक पुष्प तोड़ कर सूंघ लिया। सूघते हो वह रासभ (गधा) बन गया। और सर्वत्र रेंकता हुआ भ्रमण करने लगा। पन्द्रह दिन बीतने पर जब वह विद्याधर आया, तो उसने धयरसेनको गर्दभके रूपमें देख उसको बहुत हो भर्त्सना की। इसके बाद उसने एक दूसरे वृक्षका पुष्प सूघा कर फिर उसे मनुष्य बना दिया। इसी समय वयरसेनने विद्याधरके पैर पकड़ कर उससे क्षमा प्रार्थना की। अनन्तर विद्याधरने कहा,-"कहो, अब मैं तुम्हें
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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