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* पार्श्वनाथ-चरित्र * वृक्षपर रहते हुए केवल फल, पुष्प और जल द्वारा निर्वाह करना अच्छा है, तृणकी शय्यापर सो रहना और वल्कलके वस्त्र पहनना भी अच्छा है, किन्तु बन्धुओंके बीचमें धनहीन या मानहीन होकर रहना अच्छा नहीं। यदि मैं भाईके पास जाऊंगा तो वे यही समझेंगे कि यह किसी आशासे ही आया है। ऐसी अवस्थामें वे मुझे बहुत तो पांच सात गांव देना चाहेंगे, किन्तु मुझे तो वह स्वप्नमें भी लेना नहीं है, क्योंकि पुरुषार्थी पुरुष परसेवामें प्रेम रख ही नहीं सकते। मदोन्मत्त हाथीका मस्तक विदारण करनेवाला सिंह कभी तृण खा सकता है ? गरिबी दिखाकर खुशामद द्वारा जीविका उपार्जन करनेकी अपेक्षासे भूखों मर जाना ही अच्छा है । इसके अतिरिक्त मुझे भी तो प्रतिदिन पांचसो स्वर्ण मुद्रायें मिलती हैं। क्या यह आमदनी किसी राज्यसे कम है ? फिर ऐली अवस्थामें मुझे परमुखापेक्षी क्यों होना चाहिये ?" ___ इस तरह अनेक बातें सोचकर व्यरसेनने उसी जगह भोजन किया। अनन्तर निवृत्त हो, वह नगरमें गया और मगधा नामक एक वेश्याके यहां रहकर सानन्द जीवन व्यतीत करने लगा। क्योंकि उसके पास धनकी तो कमी थी ही नहीं। वह प्रतिदिन खूब धन दान करता और खाने-पीनेमें भी उदार हो खर्च करता। गाना, बजाना, नाटक देखना, काव्यशास्त्र और कथादिक द्वारा मनोरञ्जन करना, द्यूतक्रीड़ा करना पृभृति कार्य उसकी दैनिक दिनचर्या हो रहे थे। इसी तरह वह अपने इष्टमित्रोंके साथ आनन्द में दिन बिताने लगा। उधर राजा अमरसेनने नगरमें वयरसेनकी