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पार्श्वनाथ चरित्र * सोचा कि नृत्यमें भंग न हो, अतः उसने अपने हाथकी एक नस खींच कर वीणामें लगा दी। फलतः नाच-रंग अविछिन्न रूपसे होता रहा और निश्चित समयपर ही समाप्त हुआ। इस अपूर्व जिन भक्ति के प्रभावसे रावणने तीर्थंकर गोत्र उपार्जन किया। जिन भक्तिके प्रभावसे पद्मावतो, वैरोट्या और अजितबला प्रभृति देवियोंने रावणके हाथको पीड़ा दूर कर दी। उसी रात्रिको प्रतिमाके अधिष्ठायक देवताने रावणको स्वप्नमें कहा कि-"मुझे मेरे स्थानमें रख आओ।" यह जानकर रावणने उस जिन-विम्बको वहां पहुंचानेका काम अपनी बदरी नामक एक दासीको सौंपा। बदरी गर्भवती थी, किन्तु २३ वर्ष हो जानेपर भी उसे प्रसव न होता था। रावणके आदेशानुसार वह जिन बिम्बको लेकर चटक पर्वत पर गयी और उसके पूर्व स्थानमें उसकी स्थापना कर, वह प्रति दिन उसकी पूजा और भक्ति करने लगो। पूजा एवं भक्तिके प्रभावसे शोघ्र ही दासोको प्रसव हो गया और उसने एक पुत्रको जन्म दिया। इस पुत्रका नाम केदार रखा गया। वह जन्मसे ही वैरागी था। यौवन प्राप्त होनेपर रावणने उसे चटक पर्वतका राजा बनाया। अब केदार पचीस गांवोंका स्वामी हुआ और कनक उसका मन्त्री बना। राजा और मन्त्री दोनों धर्मनिष्ट और दानी थे। अतएव उन्होंने पुण्य करने में किसी प्रकारकी कसर न
ॐ इस वृत्तान्तसे जैन रामायण आदिका वृत्तान्त नहीं मिलता । अन्यान्य अन्योंमें ऐसा उल्लेख पाया जाता है कि रावणने अष्टापद पर्वतपर तीर्थकर गोत्र उपार्जन किया था।